Tuesday, August 25, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का ग्याहरवाँ सत्र

चाबरी  की चौपाल में कृषि पंचायत।
अपना खेत-अपनी पाठशाला, निडाना के किसानों ने पिछले सत्र में लिए सामूहिक फैसले को लागु करने के लिए अपनी व्यक्तिक जिम्मेवारियों का निर्वाहन बाखूबी किया। अगस्त की बीस तारीख में दीपक के ट्रैक्टर पर सवार होकर, पाठशाला के आठ किसान भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह के नेतृत्व में सुबह नौ बजे ललित खेड़ा पहुंचे। गावं के किसानों को राजपाल की बैठक में इक्कठा किया। फसल पोषण, कीट प्रबंधन व् रोग प्रबधन पर रत्तन सिंह ने अपना खेत-अपनी पाठशाला के अनुभव विस्तार से उपस्थित किसानों को बताये। महाबीर ने किसानों को कपास के कीटों बारे जानकारी दी। इतफाक से मौके पर मौजूद सिंधवी खेड़ा के बलवान मलिक व् बलवान वकील ने किसानों की इस कृषि-पंचायत की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए सिंधवी खेड़ा में भी एक ऐसी ही पंचायत आयोजित करने की अर्ज की। हरफूल के राजपाल ने गुहांडी भाईयों का इस कार्यक्रम के लिए धन्यवाद करते हुए जलपान का प्रबंध भी किया।
ललित खेड़ा में कृषि पंचायत
निडाना की खेत पाठशाला के किसानों की यही पंचायत अगस्त की चौबीस तारीख, बार-सोमवार को दिन के दस बजे मारुती, ट्रैक्टर व् मोटरसाईकल पर सवार होकर चाबरी की चौपाल में पहुँची। बस्साऊ अर् राममेहर तो इस पंचायत में पैदल ही जा पहुंचे। चाबरी के पच्चास से ज्यादा किसान अपने गुहांडी किसानों की बात सुनने इस कृषि-पंचायत में हाजिर हुए। पाठशाला के प्रतिनिधियों के रूप में रत्तन सिंह, रणबीर व् बसाऊ ने चाबरी के इन किसानों के साथ अपने अनुभव साझे किए। चाबरी के किसानों की तरफ से साहिब, प्रेम, परताप, महाबीर, अशोक व् करतार आदि ने बहस को आगे बढाया। इस बहस को समेटते हुए डा.सुरेन्द्र दलाल ने धान की खेती के बारे में किसानों को विस्तार से बताया। अंत में साहिब ने इस कार्यकर्म के आयोजन के लिए निडाना के किसान भाईयों का धन्यवाद किया तथा जलपान का प्रबंध किया।
सिम्मड़ो बीटल का गर्ब चेपे का भक्षण करते हुए।
महाबीर पिंडे के पाठशाला वाले खेत में कीड़े अब हांगा मारे पावै से। इसीलिए अब किसानों के सभी समूहों ने पौधों के पत्तों पर कीट गिनने छोड़ दिए। आज बागा, जिले, पाला, जयकिशन व् रत्तन की टीम ने एक पौधे पर चितकबरी सुंडी के प्रकोप को निंगाह लिया। इस सुंडी ने इस पौधे पर सात-आठ फुल-बौंकियों को क्षतिग्रस्त कर रखा था। इसके अलावा तो इस खेत में इस कीट का हमला कहीं नजर नही आया।
दीपक, महाबीर, संदीप, विनोद व् रणबीर की टीम ने एक अन्य पौधे के पत्तों पर अल को देख लिया। फसल में अल की अभी शुरुआत ही हुई है। इस टीम ने अल से प्रकोपित पौधे पर सिम्मडो नामक बीटल के बच्चे को अल खाते हुए मौके पर ही पकड़ लिया। सिम्मडो के प्रौढ़ व् गर्ब सुंडियों के अंडे भी खाते हैं। यह जानकारी रणबीर, राममेहर, राजेन्द्र व् रत्तन को पहले से ही थी। इस बीटल के गर्ब को मिलीबग के बच्चे खाते आज से तीन साल पहले ही रूपगढ के किसानों की उपस्तिथि में देख रखा है।
चितकबरी सूंडी सा ग्रसित बौकियाँ।
आज तो अगस्त की पच्चीस तारीख है। इस दिन तो इन किसानों ने खरकरामजी में कृषि-पंचायत का आयोजन करने जाना है। आज पाठशाला के सत्र का फटाफट यहीं अंत कर इस पाठशाला के सोलह किसान खरक रामजी गावं के लिए रवाना हुए।

Tuesday, August 18, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का दसवां सत्र

निडाना गावं में अपना खेत--अपनी पाठशाला का आज दसवां सत्र है. पाठशाला में किसानों की व् खेत में कीटों की संख्या लगातार कम हो रही है. एकल परिवार व् खुश्क मौसम के चलते निडानी का वजीर तो कदे ट्यूबवैल अर् कदे माइनर के साथ लटोपिन रहता है. चाबरी का सुरेश दक्षिण भारत के दौरे पर चला गया. रूपगढ के राजेश व् कुलदीप एक तो आण--जाण के खर्चे से डर गये व् दुसरे इस कपास के खेत में अभी नये--नये कीड़े नही मिल रहे. भैरों खेडा के मनोज की नानी बीमारी के चलते हिसार हस्पताल में दाखिल हो गई अर् रोशन के संदीप की अकेले यहाँ आण का ब्योंत नहीं. निडाना के पाले की भैंस अनजानी बीमारी की चपेट में आ गई. जयकिशन का साला गुजर गया. विनोद का ड्राइवर भाग गया. जयपाल नए पिछले दिनों अपनी कपास में जिंक--यूरिया घोल के साथ इमिडा का स्प्रे मार लिया. इसीलिए शर्म के मारे गोल हो गया. पाठशाला में नियमित हाजिरी बजाने वाले , महाबीर का कुछ पत्ता नहीं लगा.
जहाँ तक कीटों की बात है इस पाठशाला वाले खेत में कीट भी टोहे--टोहे पावै से. सफ़ेद मक्खी, तेला, चुरडा, स्लेटी भुंड व् माइट्स आदि कीटों की संख्या आर्थिक कगार से कोसों दूर है. जिस पत्ते पर चुरडे पावै थे उस पर माइट्स गायब पावै थी. इसका मतलब दोनों कीटों में सहअस्तित्व का रिश्ता नहीं है. रणबीर का यह भी कहना था अक् चुरडा माइट्स का खून चूसता है. रणबीर ने यह भी बताया कि मिलीबग की इस खेत में दोबारा से शुरुवात हो चुकी है.
जहाँ तक पिछले सत्र में लिए गये होमवर्क कि बात है सिर्फ़ पाँच किसान ही इसे पुरा करके लाये हैं. होमवर्क था अपने--अपने खेत में कपास कि फसल पर जिंक, यूरिया व् डी.ऐ.पी.की तिगड़ी के 5% घोल का स्प्रे करना व् इसका पौधों व् कीटों पर प्रभाव देखना. राममेहर ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि पौधों पर गजब का रौनक मेला था अर् कीडों की माँ सी मर रही थी. छोटे--छोटे कीट तो मरे पाये गये व् स्लेटी भुंड जैसे कीटों की कसुती सत्या हार रही थी.
संदीप ने बताया कि यू स्प्रे तो कपास व् धान में गजब का काम करै सै. पौधों में पोषण का अर् कीटों पर जहर का काम करते साफ़--साफ देखा गया.
रणबीर ने बताया कि इस 5% घोल का स्प्रे जहाँ कपास कि फसल के लिए अमृत का काम करते पाया वहीं कीटों के लिए हानिकारक पाया. सफ़ेद मक्खी, चुरडे, माईट्स, मिलीबग के शिशु व् तेले के निम्फ आदि कीटों के लिए मौत का पैगाम बना यह पौषक तत्वों के घोल का स्प्रे. स्लेटी भुंड व् भूरी पुष्पक बीटल के लिए मौत तो नहीं पर भयंकर सुस्ती का आलम जरुर लेकर आया यह स्प्रे.
रत्तन सिंह व् पं चंद्रपाल की रिपोर्टें भी इन रिपोर्टों से मेल खाती हुई थी.
इस घोल के कीटनाशी प्रभावों को व्यापक पैमाने पर जाँचने--परखने के लिए तथा इससे होने वाले पोषण का भरपूर फायदा उठाने के लिए किसानों ने विभिन् गावों में कृषि--पंचायत आयोजित करने का फैसला किया. अगस्त की बीस तारीख को पहली इसी पंचायत ललित खेडा में आयोजित की जायेगी. अगले सप्ताह यह कृषि--पंचायत चाबरी व् खरक रामजी गाँव में आयोजित की जायेगी.

Tuesday, August 11, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का नोवां सत्र

आज अगस्त के महीने की 11 तारीख है. खेत पाठशाला का नोवाँ सत्र है. आज जितनी भयंकर गर्मी मनबीरे ने अपनी जिन्दगी में नही देखीथी. मनबीरे ने ईगराह से निडाना जाते हुए जितने भी किसान खेतों में देखे सब के सब अपनी झोली के साथ हवा करते नजर आए. निडाना की किसान खेत पाठशाला के किसानों का भी इस ऊट--पटांग गर्मी में बुरा हाल होरया था. जो इस गर्मी में कसुते दुखी होकै न्यूँ कहन लाग रहे थे अक जमा मरगे भै. इसी दुर्गति में भी बसाऊ पै बीच में ऐ छौक लायें बिना ऩही रहा गया अर् न्यूं बोला -- टेलीविजन तो आज दिल्ली का तापमान 30 डिग्री बतावैं था. बसाऊ कै तो नाथ बस रतना सरपंच ही घाल सकै सै.
रत्तना खड़ा होकै न्यूं कहन लाग्या -- बसाऊ, आपना यु हरियाणा स्कूल जाण जोगा भी नही होया था जब तो तनै दसवीं पास कर ली थी. आपने टेम में भी साधारण--विज्ञान कि किताब में ऊष्मा आले पाठ में गर्मी दो ढाल(संदक अर् लुकमां) बता राखी थी. आज बस इतनी सी बात सै अक् इस गर्मी में घूँघट आली गर्मी का हिस्सा ज्यादा सै जो कदे भी टेम्परेचर वाले पैमाने पर दिखाई कोन्या दे. लेकिन अपने बुजर्गों की नजर ते या घूँघट आली गर्मी कदे बच नही पाई. ज्यां ऐ ते वे न्यूं कहते आए अक् भादवे का घाम अर् साझे का काम सेधया करै. करना तो चाहिए था आपां नै पानी का जुगाड़ करन वास्ते महाबीर का अर् बाकुलियाँ का जुगाड़ करन खातिर कप्तान का धन्यवाद. नहीं तो इबतक इस भयंकर गर्मी में सब कै बुलबली आ लेती. इस बात नै यहीं ख़त्म करों. बाकुलियों का गला मारो आर पानी पियो. फेर हिम्मत करके आज तो केवल पाठशाला के पिछले सत्र में तय काम पर गौर करो. महाबीर नै तो चाह--चाह में परसों एक स्प्रा ओर ठोक दिया उन्ही पोषक तत्वों का.
रतने की बात मान कर किसान इस गर्मी में न चाहते हुए भी अवलोकन व् निरिक्षण के लिए खेत में उतरे. अपने--अपने समूहों में 10-10 पौधों का निरिक्षण कर बीस मिनट में ही किसान वापिस शहतूत के निचे आ लिए. सभी किसान इस बात पर तो सहमत थे अक आज के दिन कपास के इस खेत में कीड़े तो ख़त्म से ही है. थोड़े बहुत नाम लेन खातिर बच भी रहे हैं तो उनकी सेहत ख़राब सै. इस सारे घटनाक्रम पर डा.सुरेंद्र दलाल नै स्वर्गीय प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से भी कसुता मौन धारण कर रखा है. इस बात को ताड़ कर रणबीर पै नही रहा गया आर न्यूं बोल्या- " डा.साहब आप भी इस पर कुछ तफसरा रखो. आप जमाँ--ऐ मौनी बाबा बनगे. "
जबाब में डा.दलाल न्यूं कहण लगा- " रणबीर, सच्चाई तो या सै कि हम समग्र सिफारिशों से बाहर नही जा सकते. इनमें इस बारे कुछ लिख नही रखा. म्हारी हालत तो आँखों पर डिब्बे लगे, कोल्हू में जुड़े ऊंट जैसी है जिसको सिर्फ़ कोल्हू की पैड़ों में ही चलना होता है. समग्र सिफारिशें ही सर्वोपरि सै इन तै न्यारी टेक ठान का मतलब अनुशाशन का मामला सै. जै खुदा ना खास्ता सड़क पर आ गये तो कोई पाली भी नही लावै. इब थाम ही बताओ मै क्यूकर नाथ तुड़वान की हिम्मत करू? "
या सुन कर मै मनबीर भी चुप नही रहा, " न्यूँ तो घबराओ मत. आपके पास साढे तीन हजार किसानी परिवार सै. जै सारे जने साल में एकबार चार--चार धड़ी दानें भी आप नै दे दिवां तो आप के पास साढ़े सत्रह सौ मन दाने होगे. जै मंडी में बेच के आवोगे तो सात लाख के होगे. इतनी तनखा तो आपकी कदे नही होवै. जो कहना सै खुल कर कहो. "
" मान लिया मूलधन सौ से क्या घर में ब्याज आना शुरू हो जाता है."--डा.नै अपना स्पष्टिकरण देने की कोशिश की.
जयपाल के सब्र का बाँध टुटा- "डा.दलाल, इस सांग की कोई सैदाँतिक व्याख्यां हो तो बताओ नही तो सूखी बातां के क्यों भरोटे बान्धो सो."
इस पाठशाला में सदा चुप रहने वाले सेवा अर् जिले नै भी आज एकसाथ चुपी तोड़ने का सार्थक प्रयास किया- "अगर छो में नही आवो अर् म्हारी हँसी नही करो तो एक बात हम भी कह दा."
"यहाँ तो सारे बराबर सा. खुल कै बोलो."-- रतने नै सहारा लाया.
जिले नै आगे बात बढाई- "जिब आपका यु पोषक तत्व यूरिया औस में पत्तों पर लाग ज्या तो पत्तों को जला दे सै. अर् फसल में जै टिन्डें नही पाटै तो टंकी गेल तीन किलो यूरिया का घोल पत्ते फुकन खातिर सारी हाण इस्तेमाल करा सा. फेर यु कीडों को कडै बक्शै था."
या सुन कर तो डा.दलाल भी म्हें--म्हं मुस्कराया पर पकड़ा गया. सारे किसान एकदम चिलाये- "यूरेका! --यूरेका! इब तो डा.साहब कुछ बोल."
"बात में तो जिले वाली में दम सै. जै इस बात नै जीव के वजन के हिसाब से तोल कर देखा तो या और भी वजनी हो जा सै. जिंक,यूरिया व् डी.ऐ.पी.का 5% का घोल जहाँ पौधों के लिए खुराक का कम करता है वहीं यह घोल ग्राम व् मिलीग्राम वजन वाले छोटे--छोटे कीटों के लिए जहर का कम कर सकता है. इसमे कोई ताजुब्ब की बात नहीं होनी चाहिए."-- कह कर डा, दलाल नै अपनी बारी टाळी.
आजकी पाठशाला में फैसला लिया गया कि इस हफ्ते अपने--अपने खेत में इस घोल का कीटनाशी प्रभाव देखेंगे.

Tuesday, August 4, 2009

अपना खेत - अपनी पाठशाला का आठवां सत्र


चितकबरी सूंडी का प्रौढ़।
चितकबरी सूंडी (गोभ वाली सूंडी)
चितकबरी सूंडी का अंडा।
मकड़ीः शहद की मक्खी का शिकार।
मकड़ीः कराईसोपा का शिकार।
मकड़ीःअंडों की सुरक्षा में।
मकड़ीः स्वयं हुई शिकार।
विशालकाय मकड़ी।
आज अगस्त की चार तारीख को निडाना गावं में अपना खेत - अपनी पाठशाला का आठवां सत्र है। चौमासे में भी बरसात का अकाल पड़ा हुआ है। कपास की बिजाई से लेकर अब तक केवल एक बार ही बारिश हुई है। यह मौका था 27 जुलाई का। अबकी बार तो किसानों को भूमि में मौजूद आल को दाब कर ही काम चलाना पड़ रहा है। पहले कसोले से नलाई व् अब हल से गुड़ाई करके ही खेत में खड़ी कपास की फसल के लिए नमी का जुगाड़ किया जा रहा है। इसके अलावा महाबीर पिंडे नै दो दिन पहले 5.0 ग्राम जिंक सल्फेट , 25.0 ग्राम यूरिया व् 25.0 ग्राम डी.ऐ.पी.प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर सात टंकी एक एकड़ में खड़ी अपनी इस कपास की फसल में मारी सै। आज फसल की रौनक में गजब का सुधार देख कर सभी किसान उत्साहित हैं। हमेंशा की तरह पाठशाला के इस सत्र में भी कीट अवलोकन व निरिक्षण के लिये किसानों के पाँच ग्रुप बने। हर ग्रुप में पाँच-पाँच किसान थे। प्रत्येक ग्रुप को दस-दस पौधों का सर्वेक्षण करना है व आर्थिक-कगार निकालने के लिये कीटों की गिनती करनी है। रणबीर के नेतृत्त्व में विनोद, संदीप, महाबीर व् राममेहर के किसान समूह ने आज पौधों का अवलोकन व् निरिक्षण करते हुए तेला, सफेद-मक्खी व चुरड़ा  आदि रस चूसकर हानि पहुँचाने वाले छोटे-छोटे कीड़े को व्यापक पैमाने पर मरा हुआ पाया। किसानों के इस ग्रुप ने स्लेटी-भूंड, चैफर-बीटल व भूरी पुष्पक बीटल आदि चर्वक कीटों में अजब सी सुस्ती को भी नोट किया। पोषक तत्वों के छिडकाव से पौधों में वृद्धि तो सामान्य सी बात सै पर कीटों में सुस्ती व मौत नै सभी किसानों को हैरान कर दिया। जयकिशन  ने खेत के मालिक महाबीर पिंडा पर शक कर डाला कि कहीं इसने चोरी-छुपे कीटनाशकों का स्प्रे कपास की अपनी इस फसल में कर दिया हो। महाबीर पिंडा इस आरोप पर तिलमला उठा और नेमा-धर्मी करने लगा। बात उलझती देख, डा. सुरेन्द्र दलाल ने अपने इन किसान मित्रों को इस सप्ताह अपने-अपने खेत में इस मिश्रण के 5.5 प्रतिशत घोल का स्प्रे करने व परिणाम नोट करने का सुझाव दिया। अन्तः किसानों ने पोषक तत्वों के इस कीटनाशी प्रभाव को अपने-अपने खेत में बारीकी व् विस्तार से आंकलन करने का फैसला किया। इस तिखी बहस के बावजूद किसानों के लिए यह खुशी की बात थी कि कपास के इस खेत में हानिकारक कीटों की संख्या आर्थिक कगार से कोसों दूर है। कपास के इस खेत में चित्तकबरी सुंडी का एक आध प्रौढ़ पतंगा, दो-चार सूंडी व एक-दो अंडा ही नजर आया। लगता है परजीव्याभ व् परभक्षी कीट शायद महाबीर पिंडे पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो रहें हैं। कपास के इस खेत में मकड़ियों के भी ठाठ हैं। इन मकड़ियाँ नै खेत मालिक के भी ठाठ ला रखे सै। आधा दर्जन से ज्यादा किस्म की मकड़ियाँ देख ली किसानों नै, इस खेत में आज। इस सप्ताह तो मकड़ियों की औसत प्रति पौधा इस खेत में आठ से ज्यादा आई सै। घनखरे कीड़ों को तो ये मकड़ियाँ ही देख लेंगी। पर अफ़सोस की सुंडियों के टोटे में, इंजनहारी अपने बच्चों की परवरिश के लिए किसान मित्र मकड़ियों को ही अपने मिट्टी के बने घरों में ढ़ो रही हैं। किसी ने सही कहा है कि, "जी का जी बैरी।  मक्खी का घी बैरी।।" सत्र के आखिर में हर सप्ताह की तरह इस बार भी चन्ने की बाक्लियाँ बांटी गई।

Tuesday, July 28, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का सातवाँ सत्र

कपास की बिजाई के बाद निडाना में विगत रात पहली बार ढंगसर की वर्षा हुई है। अत: आज कपास के खेत में पाठशाला की पढ़ाई नहीं हो पाई। इसीलिए आज पाठशाला के इस सातवें सत्र को कृषि विकास अधिकारी, निडाना के कार्यालय में चलाने का फैसला किया गया। आज के सत्र में डा.सुरेन्द्र दलाल ने उपस्थित किसानों को कपास की फसल में अब तक पाए गये रस चूसक हानिकारक कीटों व् मांसाहारी कीटों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। किसानों की कीट पहचान को पुख्ता करने के लिए आज लैप-टाप पर हर कीट की विभिन्न अवस्थाओं की संजीदा फोटो दिखाई गई।  
पर "तेली नै तेल की अर् मस्सदी नै खल की ". नरेंद्र के बाबु चन्द्र नै ये फोटो नहीं सुहाए अर् न्यूं बोल्या - डा.किम्में बताता हो तो कपास की फसल में खाद-पानी की बतादे? भातियाँ बरगी बाट दिखा कै मुश्किल तै मिंह आया सै। रणबीर- यु भी किम्में सवाल होया। आपां सारे नै जाणा सा अक देशी कपास में तो केवल एक कट्टा यूरिया का भतेरा। आधा कट्टा बौकी आने के समय अर् बाकि आधा कट्टा फूल आने के समय।
चन्द्र पाल नै रणबीर को बीच में रोक कर झट से बोल्या - हमने तो बी.टी.बो राखी सै। इसकी खुराक बता।
"बी.टी.कपास की खुराक का मनै कोन्या बेरा। सात समुन्द्रा पार की किस्म सै। इसके बारे में तो डा.साहिब ही कुछ बतावैगा। "-रणबीर नै अपनी जगह ली।
बी.टी.कपास की खुराक को लेकर तो डा.भी चक्कर में पड़ग्या। झट अपने झोले में से "खरीफ फसलों की समग्र सिफारिशें " नामक पुस्तक निकाली। फ़टाफ़ट पन्ने पल्टे और न्यूं कहन लगा- चंद्रपाल, जवाब तेरी बात का तो इस किताब में भी कोन्या। हो भी क्यूकर? पिछले पांच साल में इस बी.टी.कपास की इतनी ज्यादा किस्म बाज़ार में आ ली अक इतने किस्म के तो महिलाओं के सूट भी किसी एक दूकान में कोणी पावै। पर गजब यु सै अक इन इतने सारे बी.टी.हाइब्रिडाँ में तै एक भी अधिसूचित नहीं सै अर् अपने कृषि विश्वविधालय से सिफारिशसुदा नही सै। इसीलिए तो इस सिफारिशी किताब में भी इन बी.टी.किस्मों की कोई भी सिफारिश नही सै। इब थाम बताओ, मेरा के ब्योंत सै इनके बारे में कुछ बतान का। हाँ! याद आया एक किसान गोष्ठी में एक कृषि वैज्ञानिक न्यूं कहन लग रहा था,"हे!  किसान भाइयों, कृषि विश्वविद्यालय नै इन बीटी बीजों की सिफारिश  कोन्या कर राखी| इसलिए मै अधिकारिक तौर पर तो कपास की इन बी.टी.किस्मों की खुराक आप किसान भाइयों को नही बता सकता|  पर ये बी.टी बीज हैं तो संकर किस्म के ही| अत: अमेरिकन कपास की  संकर किस्मों वाली खुराक इन बी.टी.किस्मों में भी चल जाएगी|  इस लिए कपास के इन नये बी.टी.किस्मों में भी- तीन कट्टे यूरिया, तीन कट्टे सिंगल सुपर फास्फेट, चालीस किलोग्राम पोटाश व्  दस किलोग्राम जिंक सल्फेट देना चाहिए| यूरिया को छोड़ कर बाकि सारे खाद बिजाई के समय दे| यूरिया को  तीन बराबर भागों में बिजाई, बौकी आणे व् फूल आणे के समय दे|
बसाऊ पै इतना लांबा भाषण नहीं सुना गया, बीच में ही न्यूं  बोल्या, "आजकल 120 रुपये में NPK का एक किलो का पैकट आवे सै|. इसनै गेर लेवां तो  किसा  रहवै ? केवल एक किलोग्राम  किले की कपास में रंग सा ला दे सै| किम्मे बताता हो तो इसके बारे में बतादे?
डा.दलाल- " बसाऊ, प्रजनन के समय आच्छी खुराक तो चाहिए सै, वा चाहे लुग्गाई हो या कपास| हाँ! हर किसान नै इसकी किम्मत का जरुर ध्यान रखना चाहिए!"
बसाऊ ठहरा भू.पु.सरपंच| अपनी बात नै तलै क्यों पडन दे था|  न्यूं  कहन लगा - डा.साहिब, आप सारी हान उलटे बिंडे की तरफ तै क्यूँ पकड़ा करो सो| बताओ? भा अर् भोई का इस दुनियां में किसनै बेरा सै?
बात उलझी देख, भू. पु. सरपंच रत्तन सिंह पै चुप नही रहा गया अर नयूँ कहन लगा, "बसाऊ, आपां पाँचवी कक्षा तै इकाई के सवाल काढ़ण लगे थे अर दसवीं तक यू ए काम करा था। फेर इस एक किलो एन.पी.के. के पैकट की किम्मत निकालना कौनसी बड़ी बात सै। कॉपी एर पेन ठाओ। आज बाजार में 50.00 किलो यूरिया (नाइट्रोजन 46%) का एक कट्टा 242 रू में आवै सै।  अतः एक किलोग्राम शुद्ध नाइट्रोजन का मोल होया- 10.52 रुपये।  डी.ए.पी.(18% नाइट्रोजन व 46% फास्फोरस) का एक कट्टा  467 रुपये का आता है। इस कट्टे में  10.52 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 9 किलोग्राम शुद्ध नाइट्रोजन ही हो गई -
94.68रुपये की। अब  इसमें उपलब्ध 23.0 किलो शुद्ध फास्फोरस हुई -  467 - 94.68 = 372 रु. की। अतः 372 भाग 23 बराबर होगा 16 या यूँ कहले शुद्ध फास्फोरस का भाव होया 16 रुपए प्रति किलो। म्यूरेट आफ पोटाश (60%) का एक कट्टा आज 220 रुपये मैं आवै सै। यू होगा 30.0 किलो शुद्ध पोटाश का दाम। भा होगा 7.33 रुपए प्रति किलोग्राम होगा। बसाऊ तेरे उस एक किलो के पैकट नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश 190-190 ग्राम होवै सै। अब तीनों तत्वों की सही मात्रा अर सही भाव हमारे पास सै। गुणा अर जोड़ करके यू बैठेगा सात-आठ रुपए के बीच। इब बताओ कित सात-आठ रुपये अर कित एक सौ बीस रुपये। इब थाम न्यू करियो अक् एक किलो  एन.पी.के. का  यू पैकट घर बणाण खातिर कितना यूरिया, कितना फास्फोरस व कितना पोटाश चाहियेगा। यू कार्य घर जाकर खुद कर लियो।
इतनी सुण कर बसाऊ पै ना तो थूक गिटका जावै था अर ना ए निंगला जावै था।

Tuesday, July 21, 2009

अपना खेत अपनी पाठशाला का छट्टा सत्र



निडाना में अपना खेत अपनी पाठशाला को चलते हुए आज डेढ महिना हो चुका है जबकि कपास की फसल तीन महीने की हो चुकी है। अभी तक महाबीर पिंडा को इस खेत में कोई कीटनाशक इस्तेमाल नही करना पड़ा। इस का मतलब यह नही है कि इस खेत में कोई कीट ही नही आया। अन्य खेतों की तरह कपास के इस खेत में भी हरा तेला, सफेद मक्खी, चुरडा व् मिलीबग नामक रस चूसक कीट पाए गए पर कोई भी कीट आर्थिक स्तर को पार नही कर पाया। हमने पायाकि मिलीबग को फैलने से रोकने में अन्य मांसाहारी कीटों के साथ-साथ अंगीरा नामक सम्भीरका की भूमिका कारगर रही। इस भीरडनुमा छोटी सी सम्भीरका ने मिलीबग की साठ-सत्तर प्रतिशत आबादी को परजीव्याभीत करने में सफलता पाई। कराईसोपा, ब्रुमस, मकड़ी, दस्यु बुगडा, दिद्ड बुगडा व् कातिल बुगडा आदि मांसाहारी कीटों ने मिलकर हरा तेला, सफेद मक्खी, चुरडा व् मिलीबग आदि हानिकारक कीटों की वृध्दि पर लगाम लगाए रखी। रस चूसक कीटों के साथ-साथ अब कपास के खेत में स्लेटी भुंड, तेलन व् चितकबरी सुंडी के पतंगे भी दिखाई देने लगे हैं। ये कीट चर्वक किस्म के हानिकारक कीड़े हैं। इन कीटों का दलिया बना कर पीने वाली डायन मक्खी भी किसानों ने इस खेत में देखी। इतना भुखड एवं बेशर्म मांसाहारी जन्नौर किसानों ने इस से पहले नही देखा था। डा.सुरेन्द्र दलाल ने इस मक्खी को एक टिड्डा उठाये देखा। इस दृश्य को दिखाने की गरज से किसानों को आवाज देकर अपने पास बुलाया। सभी किसान इस नजारे को अभी देख भी नही पाए थे कि यह मक्खी अपने शिकार सम्मेत फुर्र से उड़ गई। समूह बल एवं दृष्टि के बलबूते किसान इस के पीछे पडे रहे। लेकिन मक्खी भी कहाँ हार मानने वाली थी। अपना शिकार साथ लिए-लिए किसानों का आधे किले का चक्कर कटवा दिया। आख़िर में संदीप मलिक ने इसे शिकार सम्मेत पकड़ कर कांच कि बोतल में रोक लिया। अब जाकर सभी किसानों ने इस डायन मक्खी के नजदीक से दर्शन किए। बोतल में भी भगतनी ने अपने शिकार को चट करना नही छोड़ा। इस के बाद शहतूत कि छाया में किसान समूहों ने चार्टों के माध्यम से अपनी- अपनी प्रस्तुति पेश करी। जिस का निष्कर्ष कुलमिलाकर यह निकला कि इस खेत में कपास की फसल में प्राकृतिक संतुलन की मेहरबानी के चलते महाबीर पिंडा को किसी भी कीटनाशक का स्प्रे करने की आवश्यकता नही है। सत्र के अंत में मनबीर व् डा,सुरेन्द्र दलाल ने किसानों को कपास की फसल में समेकित पोषण प्रबंधन की विस्तार से जानकारी दी। बाग्गे पंडित द्वारा बाकुली वितरण के साथ आज के कार्यक्रम की जय बोल दी गई।

Tuesday, July 14, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का पांचवा सत्र।

चार्ट पर रिपोर्ट तैयार करते किसान
स्लेटी भूंड
पंखुड़ियाँ चबाते हुए तेलन
बाजरा की बिजाई, धान की रोपाई व् छोरियां के दाखिले जोरों पर हैं। ये तीनों काम इसे सै जित घरबारण की बजाय घरबारी की जस्र्रत ज्यादा पडै सै। इसी लिए तो आज जुलाई की चौदह तारीख को निडाना में अपना खेत अपनी पाठशाला में किसानों की हाजिरी तीस की बजाय तेईस ही रही। खेत में पहली बार किसानों की हाजिरी कम नज़र आई। कपास की फसल पर इस सीजन के फूल भी पहली नजर आए और पहली बार ही स्लेटी भुंड व् तेलन नामक चर्वक कीट भी देखे गए। तेलन फूलों की पंखुडियां, पुंकेसर व् स्त्रीकेसर को कुतर कर खाते पाई गई जब कि स्लेटी भूंड पतों के किनारे व् फूलों के किनारे खाते हुए पाया गया। पांच--पांच किसानो के चार समूहों द्वारा दस --दस पोधों का बारीकी से सर्वेक्षण, निरिक्षण व् अवलोकन किया गया। शीशम के नीचे किसानो ने चार्टों के माध्यम से अपने अपने समूह की जानकारी दी। सफेद मक्खी, तेला व् चुरडा आदि रस चूसक हानिकारक कीटों की संख्या क्रमश: 2.7 प्रौढ़ प्रति पत्ता, 1.3 निम्फ प्रति पत्ता व् 4,7 निम्फ प्रति पत्ता पाई गई। इन कीटों कि संख्या पिछले सप्ताह के मुकाबले कुछ ज्यादा पाई गई पर आर्थिक कगार से अब भी काफी कम है। कपास का भस्मासुर मिलीबग तो 40 पौधों में से एक पर ही पाया गया। रणबीर ने अपने समूह की प्रस्तुति देते हुए बताया कि इस पौधे पर केवल 10 मिलीबग थे जिनमें से 7 मिलिबगों के पेट में अंगीरा के बच्चे पल रहे थे। अंगीरा नामक सम्भीरका ने इस खेत मे मिलीबग को ख़त्म करने में उलेखनीय कार्य किया है। अब कपास के इस खेत में मकडियों की संख्या भी काफी बढ़ गयी है। मकड़ी एक मांसाहारी जीव सै-इस बात की जानकारी तो पाठशाला के सभी किसानों को हो गयी है।
अंगिरा से परजीव्याभित मिलीबग।
दस्यु बुगड़ाः चुरड़े का शिकार।
तेला, सफ़ेद मक्खी व् चुरडा जैसे छोटे--छोटे हानिकारक कीटों का खून चूस कर गुजारा करने वाले एन्थू बुगडा के निम्फ भी कपास की फसल में पाए गये। कपास की फसल पारिस्थितिक तंत्र का विश्लेषण करने पर पाया गया कि अभी इस खेत में कीटनाशकों का इस्तेमाल करने कि दूर--दूर तक जरुरत नही है। तेलन आकार में बड़ी, दूर से ही दिखाई देने वाला कीट होने के कारण जरुर किसानों के लिए चिंता का कारण बन रही थी। पर महाबीर पिंडे व् जिले पंडित ने तेलन नामक ब्लिस्टर बीटल के नियंत्रण का देसी तरीका बता कर सबको हैरान कर दिया। उन्होंने बताया कि इस बीटल के पंख बहुत भारी है इसलिए एक बार गिरने के बाद, इसके लिए उड़ना बड़ा मुश्किल होता है। एक चप्पल हाथ में लेकर तेलन को मारो, गिरते ही पैर में पहनी चप्पल से इसे मार दो। इन दोनों ने तेलन को मार गिराने का जिवंत प्रदर्शन भी करके दिखाया। तेलन के मुतने पर शरीर पर फफोले हो जाते है, इसकी जानकारी तो किसानों को पहले से ही है। पर सेवा सिंह का न्यूं कहना की मैं तो इस तेलन नै न्यूं ऐ मार दिया करू -हथेली बीच मसल कै। मेरे कदै कुछ नहीं होंदा। या बात किस्से कै हजम नहीं होई। इस पर तो चन्द्र भी न्यूं बोल्या अक सेवा अपने इस ज्ञान नै अपने ऐ धोरे राख। इन बंकुलियाँ की तरिया फ्री में मत बाँट। आज कै इस सत्र में स्टार-न्यूज़ का स्थानीय संवाददाता श्री राजेश रावल भी मौजूद रहा और कीटों की कुछ वीडियो भी तैयार की। इस फोटों में एक एंथू बुगडा का निम्फ तेले का बाड्डी-जूस पिते हुए दिखाया गया है। ये फोटो राजेश ने ही खिंच कर इस पाठशाला के किसानों को दी है।