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Tuesday, September 8, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का तेहरवाँ सत्र

आज निडाना की अपना खेत--अपना पाठशाला का तेहरवाँ सत्र है। इसमे अब किसानों की हाजिरी कम रहने लगी है। मौसम की मार अर् कुणबे की पुकार इस पतली हाजिरी के लिए है जिम्मेवार। आज किसानों ने भिड़ते ही तम्बाकू आली सुंडी व् इसके अंडे ढूंढ़ लिए। अभी तक इस खेत में कपास की फसल पर इस सुंडी द्वारा खाए गये पत्ते नही मिले थे। बल्कि यह सुंडी भी सांठी के पौधों पर ही पाई गई है। सांठी का इस खेत में तोड़ होरया सै। इस सांठी में हरी सुंडी नै फतुर मच्चा राख्या सै। इस सुंडी को किसान सांठी वाली सुंडी कहा करै सै। किसान इस सुंडी नै मारण खातिर भी सांठी पर कीटनाशकों का छिडकाव करते हैं। उन्हें डर रहता है कि सांठी पाछे यह सुंडी बाडी में भी चढज्यागी। आज पाठशाला के किसानों ने बारीकी से निरिक्षण व् अवलोकन कर अच्छी तरह से तस्सली करली कि यह सुंडी कपास में नुकशान नही करती। सांठी में इसकी अधिकता होते ही दुनिया भर के पक्षी इस सांठी आली सुंडी को खाने के लिए खेत में आ धमकते हैं। जै किसान स्प्रे इस्तेमाल नहीं करे तो सांठी नै यह सुंडी खा जा अर् सुंडी नै कीटखोर-पक्षी नही छोड दे। खूब खैड़ मार के भी आज किसानों को इस सांठी वाली सुंडी के अंडे नजर नहीं आए। लेकिन इस माथामारी में किसानों ने इस सुंडी को परजिव्याभित करने वाली कोटेसिया नामक सम्भीरका के ककून ढूंढ़ लिए। सांठी के पौधों पर कराईसोपा के अंडे ढूंढ़ लिए। ध्यान रहे कि इस कराईसोपा के गर्ब तरुण सुंडियों व् अण्डों का भक्षण करते हैं। आज तो इस खेत में सांठी के पौधों पर हाफ्लो नामक लेडी बीटल भी पाई गई। कपास में पाए जाने वाले विभिन्न पतंगों के अंडे व् तरुण सुंडियां लेडी बीटल व् इनके बच्चों का भोजन बनती हैं। इस कपास के खेत में गजब का प्राकृतिक संतुलन है हानिकारक कीटों व् लाभदायक कीटों के बीच। हो भी क्यों ना! महाबीर पिंडा ने इस खेत में अब तक किसी भी कीटनाशक का एक भी स्प्रे नहीं किया है। और तो और अबकी बार महाबीर पिन्डै ने सड़क व् नाली के सहारे खड़े कबाड़ को भी साफ़ नही किया। इन गैरफसली पौधों को हमारे किसान कबाड़ कहते हैं तथा वैज्ञानिक इन्हे खरपतवार कहते हैं। इनमे कांग्रेस घास, पीली बूटी, कंघी बूटी, उलटी-कांड, आवारा-सूरजमुखी, अक्संड जैसे अनेक पौधे शामिल हैं। वैज्ञानिक इन पौधों को केवल हानिकारक कीटों के आश्रयदाता के रूप में ही देखते हैं। " न रहेगा बांस-अर् ना रहेगी बांसुरी।" इसीलिए तो कीट नियंत्रण के लिए इन खरपतवारों को नष्ट करने की बात करते हैं। परन्तु पाठशाला के किसानों का कहना है कि हमें कीट नियंत्रण को भी समग्र दृष्टी से निंगाहना चाहिए। प्रकृति में हर जगह-हर पल द्वंद्व मौजूद होता है। इन खरपतवारों के लिए शाकाहारी कीट प्रलयकारी भूमिका में होते हैं जबकि यही कीट, मांसाहारी कीटों व् उनके बच्चों के लिए पालनहार कि भूमिका में होते हैं। अगर हम पंगे ना लेकर इन दोनों तरह के कीटों को फलने-फूलने का मौका दे तो हमारी फसल में दोनों तरह के कीटों का आगमन साथ-साथ होगा और हमारी फसल कीटों के नुक्सान से बची रहेंगी।
सत्र के अंत में किसानों ने अगले हफ्ते 15 तारीख को होने जा रही "किसान-वैज्ञानिक संवाद" जिसमें हरियाणा के दस जिलों से 35 कृषि विकास अधिकारी, हमेटी के प्रिंसिपल, कृषि उपनिदेशक, व् के.वि.के.पिंडारा के मुख्य वैज्ञानिक भाग लेंगे, की तैयारियों का जायजा लिया। सामूहिक फैसले लेते हुए किसानों ने व्यक्तिगत जिम्मेवारियां ली। मेहमानों का स्वागत, उनके लिए नाश्ता और दोपहर के भोजन की व्यवस्था की जिम्मेवारी खेत-पाठशाला के किसानों ने तय की। आयोजन स्थल तय किया। छ: लोकेशंज के लिए छ: ग्रुप लीडर भी आजके सत्र में तय किए। नाश्ते में हलवा उपलब्द करवाने की जिम्मेवारी राजेन्द्र ने तथा बाकुलियों के प्रबंधन की जिम्मेवारी कप्तान ने ली। मेहमानों के स्वागत वास्ते गाँव के सरपंच श्री राम भगत सेठ भी उस दिन कार्यक्रम में हाजिर रहेंगे। सरपंच से बात करने की जिम्मेवारी रणबीर ने ली|

Tuesday, July 14, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का पांचवा सत्र।

चार्ट पर रिपोर्ट तैयार करते किसान
स्लेटी भूंड
पंखुड़ियाँ चबाते हुए तेलन
बाजरा की बिजाई, धान की रोपाई व् छोरियां के दाखिले जोरों पर हैं। ये तीनों काम इसे सै जित घरबारण की बजाय घरबारी की जस्र्रत ज्यादा पडै सै। इसी लिए तो आज जुलाई की चौदह तारीख को निडाना में अपना खेत अपनी पाठशाला में किसानों की हाजिरी तीस की बजाय तेईस ही रही। खेत में पहली बार किसानों की हाजिरी कम नज़र आई। कपास की फसल पर इस सीजन के फूल भी पहली नजर आए और पहली बार ही स्लेटी भुंड व् तेलन नामक चर्वक कीट भी देखे गए। तेलन फूलों की पंखुडियां, पुंकेसर व् स्त्रीकेसर को कुतर कर खाते पाई गई जब कि स्लेटी भूंड पतों के किनारे व् फूलों के किनारे खाते हुए पाया गया। पांच--पांच किसानो के चार समूहों द्वारा दस --दस पोधों का बारीकी से सर्वेक्षण, निरिक्षण व् अवलोकन किया गया। शीशम के नीचे किसानो ने चार्टों के माध्यम से अपने अपने समूह की जानकारी दी। सफेद मक्खी, तेला व् चुरडा आदि रस चूसक हानिकारक कीटों की संख्या क्रमश: 2.7 प्रौढ़ प्रति पत्ता, 1.3 निम्फ प्रति पत्ता व् 4,7 निम्फ प्रति पत्ता पाई गई। इन कीटों कि संख्या पिछले सप्ताह के मुकाबले कुछ ज्यादा पाई गई पर आर्थिक कगार से अब भी काफी कम है। कपास का भस्मासुर मिलीबग तो 40 पौधों में से एक पर ही पाया गया। रणबीर ने अपने समूह की प्रस्तुति देते हुए बताया कि इस पौधे पर केवल 10 मिलीबग थे जिनमें से 7 मिलिबगों के पेट में अंगीरा के बच्चे पल रहे थे। अंगीरा नामक सम्भीरका ने इस खेत मे मिलीबग को ख़त्म करने में उलेखनीय कार्य किया है। अब कपास के इस खेत में मकडियों की संख्या भी काफी बढ़ गयी है। मकड़ी एक मांसाहारी जीव सै-इस बात की जानकारी तो पाठशाला के सभी किसानों को हो गयी है।
अंगिरा से परजीव्याभित मिलीबग।
दस्यु बुगड़ाः चुरड़े का शिकार।
तेला, सफ़ेद मक्खी व् चुरडा जैसे छोटे--छोटे हानिकारक कीटों का खून चूस कर गुजारा करने वाले एन्थू बुगडा के निम्फ भी कपास की फसल में पाए गये। कपास की फसल पारिस्थितिक तंत्र का विश्लेषण करने पर पाया गया कि अभी इस खेत में कीटनाशकों का इस्तेमाल करने कि दूर--दूर तक जरुरत नही है। तेलन आकार में बड़ी, दूर से ही दिखाई देने वाला कीट होने के कारण जरुर किसानों के लिए चिंता का कारण बन रही थी। पर महाबीर पिंडे व् जिले पंडित ने तेलन नामक ब्लिस्टर बीटल के नियंत्रण का देसी तरीका बता कर सबको हैरान कर दिया। उन्होंने बताया कि इस बीटल के पंख बहुत भारी है इसलिए एक बार गिरने के बाद, इसके लिए उड़ना बड़ा मुश्किल होता है। एक चप्पल हाथ में लेकर तेलन को मारो, गिरते ही पैर में पहनी चप्पल से इसे मार दो। इन दोनों ने तेलन को मार गिराने का जिवंत प्रदर्शन भी करके दिखाया। तेलन के मुतने पर शरीर पर फफोले हो जाते है, इसकी जानकारी तो किसानों को पहले से ही है। पर सेवा सिंह का न्यूं कहना की मैं तो इस तेलन नै न्यूं ऐ मार दिया करू -हथेली बीच मसल कै। मेरे कदै कुछ नहीं होंदा। या बात किस्से कै हजम नहीं होई। इस पर तो चन्द्र भी न्यूं बोल्या अक सेवा अपने इस ज्ञान नै अपने ऐ धोरे राख। इन बंकुलियाँ की तरिया फ्री में मत बाँट। आज कै इस सत्र में स्टार-न्यूज़ का स्थानीय संवाददाता श्री राजेश रावल भी मौजूद रहा और कीटों की कुछ वीडियो भी तैयार की। इस फोटों में एक एंथू बुगडा का निम्फ तेले का बाड्डी-जूस पिते हुए दिखाया गया है। ये फोटो राजेश ने ही खिंच कर इस पाठशाला के किसानों को दी है।

Tuesday, July 7, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का चौथा सत्र

जुलाई की सात तारीख में सुबह के साढे सात बजे है। निडाना गावं के महाबीर पिंडा के खेत में अपना खेत--अपनी पाठशाला के लिए किसान पहुँच रहे हैं। निडाना के किसानों के अलावा रुपगढ़ गावं से राजेश व् कुलदीप जेई, ईगराह से मनबीर व् धर्मबीर, चाबरी से सुरेश व् निडानी से वजीर भी इस पाठशाला में भाग लेने के लिए आए हैं। भैरों खेड़ा के संदीप व् मनोज भी इस सत्र में टेम पर ही आ लिए। ललित खेड़ा के रामदेव, राजकुमार व् रमेश भी यहाँ उपस्थित हैं। आजकल भाईचारे के टोटे में इतने भाइयों का एक जगह कीटों के खिलाप जंग में शामिल होना मंबिरे के लिए बहुत खुशी की बात सै। पर यहां बजट की बहस पर बरसात की बहस भारी पड़ रही है। देश भर के ज्योतिषियों व् मौसम वैज्ञानिकों की खिली उडाते हुए कप्तान तीन दिन के भीतर भारी बरसात की भविष्यवाणी कर रहा है। इसी बरसात की आश में आसमान की तरफ़ टक--टकी लगाए किसानों की टोलियाँ अपने हाथ में कागज, कलम व् लैंस ले कर कपास की फसल में अवलोकन, निरिक्षण व् सर्वेक्षण के लिए उतरती हैं। प्रत्येक टोली में पाँच किसान। इन्ही में से एक ग्रुप का लीडर। मनबीर, रणबीर, जयदीप, जयपाल, रत्तन व् जयकिशन स्वभाविक तौर पर लीडरों के रूप में सामने आ रहे है। आज उस समय किसानों की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा जब उन्होंने खेत में घुसते ही मित्र कीट के रूप में क्राईसोपा के अंडे, उसके शिशु व् प्रौढ़ भारी तादाद में दिखाई देने लगे। इसका सीधा सा मतलब था- हरे तेले, सफ़ेद मक्खी, चुरडा व् मिलीबग आदि हानिकारक कीटों का खो। रुपगढ़ से आए राजेश ने अक्संड के पौधे पर मिलीबग के बच्चों को खाते हुए हाफ्लो के गर्ब मौके पर पकड़ लिए। हाफ्लो ब्रुम्स नाम की एक छोटी सी बीटल है जिसके प्रौढ़ व् गर्ब बडे ही चाव से मिलीबग के शिशुओं को चबा -चबा कर खाते है। क्राइसोपा के शिशुओं को बंद बोतल में थोक के भाव तेले, सफ़ेद-मक्खी व् चुरडा के प्रौढ़ों व् बच्चों को खाते अपनी आंखों से देखा। किसानों ने कपास की फसल में मकडियों को भी खूब मौज करते देखा। इसके अलावा मित्र कीटों के रूप में मिलीबग की कालोनियों में अंगीरा नामक सम्भीरका भी देखि गई जो कीट--वैज्ञानिकों में एनासिय्स के रूप में प्रसिध्द है तथा मिलीबग की पुरी आबादियों को परजीव्याभीत करने में सक्षम है। मित्र कीटों की उपस्थिति से अति--उत्साहित हम कीटों की गिनती कर लेने के बावजूद आज इनके आर्थिक स्तर की गणना करने से चुक गये। चाह इसी ही चीज होवै सै। कपास की फसल में हानिकारक कीटों के विरुद्ध जंग में अचानक इतने साथी व् हिमायती मिल जाने पर किसान खुशी में सब कुछ भूले जा रहे थे। क्या आर्थिक हद? और क्या पारिस्थिति विश्लेषण? इनकी इस खुशी में डा.क्यूँ भांजी मारण लाग्या। आज के सत्र में आर्थिक हद अर् पारिस्थिति विश्लेष्ण बीच में ही छोड़ कर डा.सुरेन्द्र दलाल ने भी लैप--टाप पर स्लाइड्स की मार्फ़त मिलीबग के इतिहास, इसका जीवन--चक्र, भोजन विविधता व् भक्षण क्षमता, इसकी विभिन् प्रजातियों, इसकी प्रजनन क्षमताओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए इसके परजीवियों, परभक्षियों व् रोगाणुओं की जानकारी किसानों को दी। माणस ज्यादा-जगह थोड़ी, ऊपर तै बिजली कोन्या थी। इस लिए स्लाइड दिखाने वाले व् देखने वाले सब पसीने में बुरी तरह भीग गये। पर उलाहना किसनै देवै। इस काम खातिर किस्से नै पीले चौल तो भेजे नही थे। पाठशाला में बांटी जाने वाली बांकुलियों को कोई न्यौंदे के चौल समझ ले तो इसमे किस्से का के कसूर। लैप-टाप की सेवाएँ उपलब्ध करवाने के लिए श्री नरेंद्र सैनी का धन्यवाद करते हुए, निडाना गावं के भू.पु.सरपंच व् इस पाठशाला के नियमित छात्र बसाऊ राम ने सत्र समाप्ति की घोषणा की।