Monday, July 22, 2013

खेत कीट पाठशाला का पांचवा सत्र - राजपुरा

मेघराज की गर्ज,
कीटनाशको का कर्ज,
पीठ पे टंकी, टंकी में जहर,
उठ रही थी कीटनाशको की लहर
दिनांक -(20-07-2013)


ये नजारा था डॉ सुरेंद्र दलाल कीट पाठशाला के बगल वाले खेत का जहां किसान पीठ पर स्प्रे की टंकी लादे कीटनाशको की बौछार कर रहा था और उसके पडोसी खेत में बिना कीटनाशको के खेती करने की मुहिम  को बढ़ाया जा रहा था। आज राजपुरा में खेत पाठशाला का पांचवा सत्र शुरू होने   वाला था जिसमे कृषि विकास अधिकारी शिरकत करने वाले थे जिनका नेतृत्व  कर रहे डॉ बलजीत लाठर। खेत, दिवार, व् पेड़ सभी कीटो के पोस्टरों से लदे हुए थे और ये मेहनत थी सरपंच बलवान की। तैयारी हो जाने के बाद समय था किसानो के साथ बैठकर कार्यक्रम को आगे बढाने की योजना  बनाना। समय के साथ कृषि विकास अधिकारी भी पहुच गए जो की 21 दिवसीय प्रशिक्षण पर आये हुए थे और अधिकतर नौजवान थे। 30-35 अधिकारियों  का जत्था जैसे ही पाठशाला में पंहुचा तो सभी में खुशी की लहर  दौड़ पड़ी।पाठशाला में बतोर मुख्यातिथि  रहे धर्मपाल उर्फ़ मोनू लोहान  ने 11000 रूपए की राशि इस मुहिम को आगे बढाने के लिए भेट की।सभी पेन, कापी, और लेंस लेकर खेतो में पहुच गए और कीटो का अवलोकन किया। नोजवान अधिकारी बहुत उत्साहित नजर आ रहे थे। अवलोकन के बाद मेजर कीड़ो का आकड़ा खतरे की सीमा से नीचे  ही रहा जैसा की हर बार होता आया था। कृषि विकास अधिकारी डॉ कमल सैनी व् कीटाचार्य रणबीर,मनबीर, बलवान,सुरेश आदि ने पाठशाला को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया की पौधे और कीड़ो में बहुत पुराना रिश्ता है ये एक दुसरे के साथ लाखो सालो से रह रहे है और हम स्प्रे करके इनके रिश्ते को तोड़ने में लगे हुए है और अपने आप को विनाश की और धकेल रहे है। उन्होंने बात को आगे बढाते हुए कहा की किसान भय और भ्रम के कारण अंधाधुंध स्प्रे कर रहा है और अपने आप को मुसीबत में डाल रहा है इस भ्रम से निकलने का तो एक ही उपाय है की कीड़ो की पहचान करी जाये। कीटाचार्य  किसानो ने अपना ज्ञान अधिकारीयों से साझा करते हुए कीड़ो का फसल चक्र व् उनके खान पान के बारे में बताया। इस मुहीम को आगे बढाने के लिए और सही मार्गदर्शन देने के लिए अधिकारियों को चाहिए की वे भूमिगत ज्ञान भी हासिल
कर ले। इन सब के बाद किसानो व् अधिकारीयों के बीच बातचीत हुई जिसमे किसानो ने अधिकारियों के सवालों  के   जवाब पूर्ण रूप से दिये और अधिकारियों की उलझनों को दूर किया। अंत में बराह तपा खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने सबका धन्यवाद् करते हुए पाठशाला का अंत किया।

 

मेजर कीड़ो की प्रति पत्ता औसत व् उनकी खतरे की संख्या जो की गोल की हुई है 

Tuesday, July 24, 2012

खाप खेत पाठशाला का छट्टा सत्र

‘कीट नियंत्रणाय कीटा: हि:अस्त्रामोघा’ अर्थात कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीट ही अचूक अस्त्र है। यह बात कीट कमांडो किसान रणबीर मलिक ने मंगलवार को निडाना गांव के खेतों में आयोजित किसान पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों के सामने कीटों की पैरवी करते हुए रखी। पिछले कई दशकों से किसानों व कीटों के बीच चले आ रहे झगड़े को निपटाने के लिए खाप पंचायत की अदालत में आए मुकदमे की सुनवाई के लिए खाप प्रतिनिधि किसान पाठशाला में पहुंचे थे। खाप पंचायत की तरफ से आए सफीदों बारहा प्रधान रणबीर देशवाल, किनाना बाराह के प्रधान दरिया सिंह सैनी, हाट बारहा के प्रधान दयारनंद बूरा व हटकेश्वर धाम कमेटी के प्रधान बलवान सिंह बूरा ने कीट कमांडो किसानों के साथ खेत में बैठकर कीटों व पौधों की भाषा सीखने के लिए प्रयास किए। पाठशाला में किसानों ने 6 ग्रुप बनाकर कीटों का सर्वेक्षण किया। खाप प्रतिनिधियों ने कीट सर्वेक्षण में पाया कि कपास के इस खेत में रस पीकर गुजारा करने वाली सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़ा हानि पहुंचाने की स्थिति से काफी नीचे हैं। दर्जनभर गांवों से आए किसानों ने भी अपने-अपने खेतों से तैयार की कीट सर्वेक्षण रिपोर्ट को पंचायत के समक्ष प्रस्तुत किया। जिसमें कीट हानि पहुंचाने की स्थिति से दूर नजर आए। खेत अवलोकन के दर्शय प्रस्तुत करते हुए किसान संदीप ने बताया कि उनके ग्रुप ने मकड़ी द्वारा सलेटी भूड को खाते देख। रोशन मुनिम ने बताया कि इनके गु्रप ने क्राइसोपा के बच्चों को लेडी बिटल का गर्भ खाते देखा। इस दौरान उन्हें फसल में फलेरी बुगड़ा व हथजोड़ा कीट भी  देखे। लोहिया व जोगेंद्र ने बताया कि सर्वेक्षण के दौरान उन्हें मकोड़े को सलेटी भूड का काम तमाम करते हुए देखा। इंटल कलां से आए किसान चतर सिंह ने कहा कि उनके ग्रुप ने डायन मक्खी, लोपा मक्खी, दीदड़ बुगड़ा के बच्चे, कातिल बुगड़ा, सिंगु बुगड़ा आदि मासाहारी कीडे देखे। चतर सिंह की बात को बीच में ही काटते हुए महाबीर व सुरेश ने कहा कि कपास की फसल में 6 किस्म की मासाहारी मकड़ी उन्होंने देखी हैं। सर्वेक्षण के बाद जो रिपोर्ट सामने आई उस रिपोर्ट को देखते हुए अलेवा से आए किसान जोगेंद्र ने कहा कि कपास के इस खेत में तो मासाहारी कीटों के लिए दो दिन का भी भेजन नहीं है। किसान अजीत ने बताया कि डायन मक्खी पौधे के पत्ते को मचाम (ज्योंडे) के रुप में इस्तेमाल करती है और वहीं पर बैठकर कीटों पर घात लगाती है। डायन मक्खी शिकार को पकड़ कर लुंज करने के लिए उसके शरीर में जहर छोड़ती है और उसके बाद अपने ठिकाने पर ले जाकर उसका भक्षण करती है। कातिल बुगड़ा शिकार को  पहले कत्ल करता है उसके बाद उसके मास को तरल कर उसको चूसता है। किसानों ने अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि खुशी की बात तो यह है कि पाठशाला में ट्रेनिंग ले रहे किसानों को अभी तक फसल में स्प्रे के इस्तेमाल की जरुरत नहीं पड़ी। रणबीर मलिक ने बताया कि 2008 से वह इस मुहिम से जुड़ा हुआ है और इस दौरान उसने कभी भी स्प्रे नहीं किया है। वह पिछले दो सालों से देसी कपास की खेती ले रहा है। कपास की बिजाई के लिए बाजार से बीज खरीदने की बजाए कपास की लुढ़वाई करवाकर घर पर ही कपास का बीज तैयार कर देसी कपास की बिजाई करता है। इगराह के किसान मनबीर रेढू ने कहा कि उसने पिछले चार साल से एक बार भी अपनी फसल में स्प्रे का प्रयोग नहीं किया है। रमेश व रामदेवा ने बताया कि उन्होंने तीन साल से स्प्रे का प्रयोग
किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श करते किसान।
पूरी तरह से बंद कर रखा है। जयभगवान ने बताया कि उसने पिछले दो वर्षों से एक बार भी स्प्रे का इस्तेमाल नहीं किया है। खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि हमारी तो सिर्फ 36 बिरादरी ही हैं, लेकिन कीटों की तो 10 लाख किस्में हैं, तीस लाख किस्म के जीवाणु हैं। अगर खुदा ना खास्ता इस पृथ्वी से ये जीव लुप्त हो जाएं तो मानव समाज अपने बलबुते तो दो साल भी  जीवित नहीं रह सकता। ढांडा ने कहा कि 30 अक्टूबर को 18वीं पंचायत होगी और इस पंचायत के बाद खाप प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श कर नवंबर माह में 19वीं पंचायत के लिए समय निर्धारित किया जाएगा। इस पंचायत में पूरे प्रदेश की खाप पंचायतों के प्रतिनिधि भाग लेंगे तथा दशकों से चले आ रहे इस विवाद को निपटाने के लिए अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाएंगे। किसान पाठशाला के किसानों ने खाप प्रतिनिधियों को हथजोड़े का चित्र स्मृति चिह्न के तौर पर देकर सम्मानित किया।
अपने मचाम बना कर शिकार के इंतजार में बैठी डायन मक्खी।
   

Tuesday, June 19, 2012

खाप खेत पाठशाला का पहला सत्र

 इस सदी के बारहवें साल में आज के दिन निडाना के जोगिन्द्र मलिक के खेत में खाप खेत पाठशाला की शुरुवात हुई. इस पाठशाला में 12 गावों के किसान भाग ले रहें हैं. ये गावं हैं-निडाना, निडानी, ढिगाना, लालित खेड़ा, चाबरी, खरक रामजी, सिवाहा, अलेवा, शाहपुर, राजपुरा--भैन, इगराह, जलालपुरा व रोहतक जिला के लखन--माजरा व् भैंसी.  मिलजुल कर कीट विज्ञान के चश्मे से स्थानीय ज्ञान पैदा करने की कौशिश करेंगें.


Tuesday, October 6, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का सत्रहवां सत्र



आज निडाना में चल रही "अपना खेत-अपनी पाठशाला" का सत्रहवां सत्र है| इस समय तक किसान दो-दो चुगाई कर चुके हैं| आजकल सुबह के सात जल्दी बज जाते हैं| भले बक्त्तां में तो सरकारी स्कूलों का समय भी इस महीने तै साढ़े नौ बजे का हो जाया करता| इस पाठशाला में किसान सात बजे क्यूकर पूग जावै? इसीलिए तो आज आठ बजे भी डा.दलाल नै एडी ठा-ठा के किसानों की बाट देखनी  पड़ रही है| ऐकले नै ना कीट दिवैं दिखाई अर् नांही किसान| आच्छा कसुता चाला होया| ऊपर तै आणे-जाणे वाले कपास के खेत में ऐकले की हांसी और करण लागगे| ख़ैर जो भी हो, समय के पहियें नै तो घूमते रहना ही था| आहिस्ता-आहिस्ता पौने नौ बज गये जिब बसाऊ अर् बागा आते दिखाई दिए| डा.कै तो घी सा घल गया| सवा नौ बजे तक गिन कर पुरे इक्कीस किसान आ चुके थे| आज डा.को पहली बार अहसास हो रहा था कि कार्यक्रम का समय और स्थान हमेशा किसानों कि सहूलियत और फुर्सत के हिसाब से तय करना चाहिए| नही तो न्युए बाट देखनी पड़ेगी ज्यूकर आज देखनी पड़ी|
"खेत में तो घुस नही सकते| पिंडे नै कल ही इसमें ठाडा पाना ला दिया| इब के जरुरत थी पानी लान की?" - बिने के पाले नै छेड़ा छेड्या|
"इस टेम पै कपास की फसल में पानी की खासी जरुरत हो सै| नही तो पैदावार पै असर आवैगा|"- कई किसान एकदम टूट कै पड़े| रत्तन नै सुझाव दिया कि अब तो पाठशाला का काम समाप्ति की ओर है इसलिए अपने को इस पुरे सीजन में कीटों का हिसाब-किताब करना चाहिए ओर फेर अपनी पैदावार व् क्रिया-कलापों का भी हिसाब करना चाहिए| या बात सभी को पसंद आई| सभी शहतूत के निचे इक्कठे हो लिए| इस सत्र में च्या-भां व् होच-पोच रोकने के लिए डा.दलाल को जिम्मेदारी सौपी गई| उन्होंने संदीप को इस काम के लिए आमंत्रित किया| संदीप नै सभा में बताया कि शुरू में तो इस कपास कि फसल में चुरडा, हर तेला(COTTON JASSID), सफ़ेद मक्खी(WHITE FLY), मकडिया-जूं व् मिलीबग(MEALYBUG) नामक हानिकारक कीड़े देखे गये परन्तु इनमे से कोई भी रस चूसक कीट आर्थिक-कगार को छू नही पाया| इस लिए इस सीजन में इनमे से किसी भी कीट के नियंत्रण या प्रबंधन की आवशयकता नही पड़ी|
"स्टिंक-बग, मिरिड-बग व् मसखरा-बग(SQUASH BUG) भी तो देखे थे|", रणबीर ने बीच में  टांग अड़ाई|
"देखन नै तो! तेलन(BLISTER BEETLE), भूरी पुष्पक-बीटल(BROWN FLOWER BEETLE) व् चैफर-बीटल(CHAFER BEETKE) भी देखी थी|"- जवानों की बहस में बसाऊ नै जोश दिखाया|
बहस उलझ-पुलझ होते देख डा.दलाल न्यूं कहन लगा, "बसाऊ, मेरे यार तू तो पांच साल गाम का सरपंच भी रह लिया| कढ़या होया भी अर् पढ़या होया भी| फेर क्यूँ बीच में लीख पाडै| बता कित रस-चूसक कीट अर् कित चर्वक किस्म के कीट? रस चुस्कों की बात चल रही थी, चलन दे| "
"मनै, ऐकले नै क्यूँ रोको? डा.साहिब| यु रनबीर भी तो बीच में डिकड़े तोड़े था!"-बिना जबाब दिए बसाऊ कै सब्र नही आया|
" ठीक सै, इब आगै तै एक टेम पै एक ही बोलेगा| वो अपनी पूरी बात कह ले तब दूसरा बोलेगा| बीच में टोका-टाकी नही होगी| इब यु रुपगढ़िया राजेश हमें चर्वक किस्म के कीटों का मोटा-मोटा हिसाब देगा|" - डा.दलाल ने उपस्थित किसानों से मुखातिब हो अपना आदेश सुनाया|
राजेश, "डा.साहिब इस कपास के सीजन में फलीय भागों को नुकशान पहुचाने वाली, तीनों सुंडियां देखन नै भी नही मिली| एक दिन तो चितकबरी-सुंडी(SPOTTED BOLLWORM-ADULT) का प्रौढ़ मिला था अर् केवल एक दिन एक पौधे पर सात- आठ बौकियों पर इसकी सुंडी का नुकशान देखने को मिला था| जहाँ तक गुलाबी सुंडी की बात सै, इससे प्रकोपित केवल दो फिरकीनुमा फूल, मैने अपने खेत में इस पुरे सीजन में नजर आये| ना तो गुलाबी-सुंडी के दर्शन हो पाए अर् ना इसके अंडे व् प्रौढ़ दिखाई दिए| अमेरिकन-सुंडी तो 2001 में अपना विकराल रूप दिखा कर तकरीबन गायब सी हो रही है| लेकिन कपास के कुबड़े कीड़े


, हरे कुबड़े कीड़े(LOOPER), तम्बाकू आली सुंडी(ASIAN COTTON LEAF WORM), पत्ता लपेट सुंडी(COTTON LEAF ROLLER), लाल बालों वाली सुंडी व् सांठी आली सुंडी(Spoladea recurvalis)  आदि कीड़े जरुर कभी-कभार देखने में आये| परन्तु इनका भी कपास की फसल में कोई नुकशान देखने में नहीं आया|"
होक्मे का संदीप न्यूं कहन लगा,"डा.साहिब, इस राजेश नै न्यूं पूछो अक या सांठी वाली सुंडी कपास नै कद तै खान लागगी| मनै अपने खेत में खूब खेड़ मार कर देख ली| या सांठी वाली सुंडी कपास के पौधों को कुछ नहीं कहती| लोग बेमतलब डरते होए इस नै मारन खातिर सांठी पर भी कीटनाशकों का स्प्रे करते मिल जायेंगे|"
संदीप की पूरी बात ध्यान तै सुनकै डा.दलाल कहन लगा, "संदीप यु राजेश के तेरा जेठ लागै सै? सीधे राजेश नै ए क्यूँ नहीं पूछ लैंदा|" या सुन कै सारे किसान खिल-खिलाकर हंस पड़े| पर रतने नै या हंसी नहीं सुहाई अर् न्यूं बोल्या, "मेरी बात सुनो! सारे कीड़े गिना दिए| बी.टी.कपास में, हम इस मिलीबग तै डरा थे| यु मिलीबग तो भस्मासुर जिसा दिखै था| पर जमां फुस्स लिकड़ा| इसके तो भांत-भांत के कीड़े अर् रोगाणु ग्राहाक पाए| पर इस लाल-मत्कुण(RED COTTON BUG) व् श्यामल-मत्कुण(COTTON DUSKY BUG) का के करां? इनको खाने वाला कोई कीड़ा, हमने नहीं देखा| एक-आध लाल-मत्कुण जरुर फफूंद रोग से मरता हुआ पाया गया| किते-किते इसनै, मकड़ी भी चपेटे पाई गई| फेर भी इन दोनु मत्कुनों ने इबकी बार कपास की फसल में नुकशान करण में कसर नहीं घाली, खासकर बी.टी.कपास में| कम तै कम भी एक किले गेल पांच मन का खादा मारा| ये दोनु कीड़े कपास के बीजों का तेल पीगे| ऊपर-ऊपर तै कपास आछी दिखें गई अर् मंडी में तोल के समय कम पाई| इब कम उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिक शब्दां की पूंछ ठा-ठा कै इस के किम्मे कारण गिना दियो| मसलन- किसानों द्वारा प्रबंधन तकनीक का पूरी दक्षता के साथ इस्तेमाल न करना, हईब्रिडों का सही चुनाव ना करना, नये कीड़ो का आगमन एवं प्रकोप होना आदि|

Tuesday, September 29, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का सोलहवां सत्र


Tuesday, September 22, 2009

अपना खेत अपनी पाठशाला का पंद्रहवां सत्र

निडाना कि इस पाठशाला का पिछला सत्र "किसानों-वैज्ञानिकों का संवाद" के नाम पर था। सारा दिन 35 कृषि विकास अधिकारियों के साथ बीता। गजब का हुआ अनुभव और हुई अजब सी अनुभूति। पाठशाला के आयोजकों एवं संयोजकों के पास इसके वर्णन एवं व्याख्याँ के लिए शब्द नहीं हैं। इस कार्यकर्म से किसानों के उत्साह में संचार की बानगी आज पाठशाला के पन्द्रहवें सत्र में दिखाई दी। अब कपास की फसल में अन्य कीटों की अपेक्षा "Red Cotton bug" व् "Cotton Dusky Bug" ज्यादा दिखाई देने लगे हैं। इन्हीं दो पादपखोरों पर सभी का ध्यान है। रणबीर ने आशंका प्रकट की की काटन डस्की बग के सैकडों निम्फ ज्यादातर अर्धखिले टिंडों में पावै सै। हो-ना-हो यु बग अंडे भी अर्धखिले टिन्डाँ में देता पावैगा। या सुनते ही मिहर सिंह के सुरेन्द्र नै कपास के फोहे से बीज के पास तीन झकाझक सफ़ेद अंडे ढूंढ़ दिए। दीपक फोहे में से हलके पीले रंग के अंडे खोज लाया। रणबीर ने कच्चे पत्ते पर हलके गुलाबी रंग के अंडे ढूंढ़ मारे। तीनों किसानों द्वारा लाये गये ये अंडे हालाँकि तीन रंग के
थे पर तीनों की बुनावट व् आकार हुबहू एक जैसा था। इसका मोटा सा अंदाजा यही था की ये अंडे एक ही कीट के हैं। अर् हैं भी- गाधला बग़ के। ठीक इसी क्षण बिल्ली की तरह दा मे बैठे बसाऊ नै डा.सुरेन्द्र दलाल को लाठी की खोद अर् भीत बीच ले लिया, "डा.साहब, आपने तो न्यूँ बताया था अक यू गंधला बग़ अपने अंडे या तो गीली जमीन में देता है या फ़िर जमीन की तरेडों में।"

डा.दलाल नै भी एक बै तो धरती भिड़ी होगी। पर तुंरत संभल के न्यूँ बोल्या," मेरा इसमे किम्मे कसूर नहीं। मनै तो या बात थारै तै किताब में तै पढ़ कर बताई थी। किताब NCIPM,Pusa Campus,New Delhi आल्याँ की सै। चार धुरंधर विज्ञानिकां नै मिलकर लिख राखी सै। 1999 में 105 रुपये में खरीदी थी।" इतना कह झट डा.साहिब नै झोले में से किताब निकाल कर रत्तन के हाथ पर रख दी।
रत्तन भी पुरा खपड, बिना किताब खोले न्यूँ कहन लगा अक डा.साहब, आपनै अपराधबोध का शिकार होन की जरूरत नही। या तो प्रकृति सै। इसके खेल न्यारे-न्यारे। हो सके सै भले बक्तां में इस गंधले बग़ का जापा जमीन रूपी सामान्य हस्पताल में होंदा हो और इब इन खातिर भी अधखिले टिंडों के फोहों में डिलिवरी हट खुलगे हों।
इब तो बेधड़क हो कै इस गंधले बग़ के परभक्षी, परजीव्याभ, परजीवी या रोगाणुओं के बारे में बताओ।" मनबीर नै आज पहली बार डा.दलाल का आत्मविश्वास डगमगाया देखा। रत्तन कै हाथ में से हैंड-बुक लेली व् खोल कर पढ़न लगा। थोडी देर बाद न्यूँ बोल्या अक यु बग़ बहुत तीखी गंध छोड़ता है। इसीलिए इस बग़ को खाने वाले कीट भी बहुत कम होंगे। इस हैंड-बुक में तो इस बग़ का केवल एक ही परभक्षी बता रखा है। इसका नाम सै-Tricholeps tantilus. मेरे ख्याल तै तो यू भी एक बुगडा सै जो दुसरे कीटों का रक्त चूस कर गुजारा करता है। शायद हो भी एन्थु बुगडे की मौसी का छोरा। ना तो मनै इसकी पिछाण अर् ना मनै इसकी फोटों देख राखी।
रामजी लाल का चन्द्र जमाँ भरा बैठा था। इतनी कडे उट्टै थी। न्यूँ बोल्या अक किसने देखा सुरग भरथरी आपा मरे बिना। चालो अर् फेर माथा मारो इन अधखिले टिन्डाँ मै। और देखते-देखते किसानों ने इन अधखिले फलीय भागों में चार कीट पकड़ लिए। इनमे से दो मैगट अर् एक गर्ब सै। किसके सै ? या ना to डा.नै बेरया ar ना किसानां नै। समय अर् स्थान के हिसाब से सै परभक्षी। इनकी सही पहचान व् भक्षणता का पता लगाने का काम, किसानों की यह पाठशाला कीट-वैज्ञानिकों के जिम्में छोड़ती है। आजकल सारी यूनिवर्सिटियां में इंटरनेट सै। कोई न कोई भला कीट-वैज्ञानी जरुर म्हारी इस काम में मदद करेगा।
"सपने में ग्याभण होण की बाण छोड़ दो अर् इस डा.की जिम्मेवारी लावो। हमेटी, कृषि विश्वविधालय या इंटरनेट पर तै इन कीटों का भेद पाड़ कै लावै।" जयकिशन शर्मा नै सुझाव दिया। इसके साथ ही कप्तान द्वारा बाकुलियाँ बांटने के साथ पाठशाला के इस सत्र का समापन हुआ। इसी समय पंजाब केसरी के संवाददाता श्री अनिल पंघाल व् युवा शक्ति के पदाधिकारी श्री दलबीर चहल आ पहूँचे पाठशाला के इन किसानों से मौके पर संवाद करने। सवा घंटे के इस नये सत्र में अनिल पंघाल ने किसानों से ढेर सारी जानकारी इक्कठी की।