Tuesday, July 24, 2012

खाप खेत पाठशाला का छट्टा सत्र

‘कीट नियंत्रणाय कीटा: हि:अस्त्रामोघा’ अर्थात कीटों को नियंत्रित करने के लिए कीट ही अचूक अस्त्र है। यह बात कीट कमांडो किसान रणबीर मलिक ने मंगलवार को निडाना गांव के खेतों में आयोजित किसान पाठशाला में पहुंचे खाप प्रतिनिधियों के सामने कीटों की पैरवी करते हुए रखी। पिछले कई दशकों से किसानों व कीटों के बीच चले आ रहे झगड़े को निपटाने के लिए खाप पंचायत की अदालत में आए मुकदमे की सुनवाई के लिए खाप प्रतिनिधि किसान पाठशाला में पहुंचे थे। खाप पंचायत की तरफ से आए सफीदों बारहा प्रधान रणबीर देशवाल, किनाना बाराह के प्रधान दरिया सिंह सैनी, हाट बारहा के प्रधान दयारनंद बूरा व हटकेश्वर धाम कमेटी के प्रधान बलवान सिंह बूरा ने कीट कमांडो किसानों के साथ खेत में बैठकर कीटों व पौधों की भाषा सीखने के लिए प्रयास किए। पाठशाला में किसानों ने 6 ग्रुप बनाकर कीटों का सर्वेक्षण किया। खाप प्रतिनिधियों ने कीट सर्वेक्षण में पाया कि कपास के इस खेत में रस पीकर गुजारा करने वाली सफेद मक्खी, हरा तेला व चूरड़ा हानि पहुंचाने की स्थिति से काफी नीचे हैं। दर्जनभर गांवों से आए किसानों ने भी अपने-अपने खेतों से तैयार की कीट सर्वेक्षण रिपोर्ट को पंचायत के समक्ष प्रस्तुत किया। जिसमें कीट हानि पहुंचाने की स्थिति से दूर नजर आए। खेत अवलोकन के दर्शय प्रस्तुत करते हुए किसान संदीप ने बताया कि उनके ग्रुप ने मकड़ी द्वारा सलेटी भूड को खाते देख। रोशन मुनिम ने बताया कि इनके गु्रप ने क्राइसोपा के बच्चों को लेडी बिटल का गर्भ खाते देखा। इस दौरान उन्हें फसल में फलेरी बुगड़ा व हथजोड़ा कीट भी  देखे। लोहिया व जोगेंद्र ने बताया कि सर्वेक्षण के दौरान उन्हें मकोड़े को सलेटी भूड का काम तमाम करते हुए देखा। इंटल कलां से आए किसान चतर सिंह ने कहा कि उनके ग्रुप ने डायन मक्खी, लोपा मक्खी, दीदड़ बुगड़ा के बच्चे, कातिल बुगड़ा, सिंगु बुगड़ा आदि मासाहारी कीडे देखे। चतर सिंह की बात को बीच में ही काटते हुए महाबीर व सुरेश ने कहा कि कपास की फसल में 6 किस्म की मासाहारी मकड़ी उन्होंने देखी हैं। सर्वेक्षण के बाद जो रिपोर्ट सामने आई उस रिपोर्ट को देखते हुए अलेवा से आए किसान जोगेंद्र ने कहा कि कपास के इस खेत में तो मासाहारी कीटों के लिए दो दिन का भी भेजन नहीं है। किसान अजीत ने बताया कि डायन मक्खी पौधे के पत्ते को मचाम (ज्योंडे) के रुप में इस्तेमाल करती है और वहीं पर बैठकर कीटों पर घात लगाती है। डायन मक्खी शिकार को पकड़ कर लुंज करने के लिए उसके शरीर में जहर छोड़ती है और उसके बाद अपने ठिकाने पर ले जाकर उसका भक्षण करती है। कातिल बुगड़ा शिकार को  पहले कत्ल करता है उसके बाद उसके मास को तरल कर उसको चूसता है। किसानों ने अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि खुशी की बात तो यह है कि पाठशाला में ट्रेनिंग ले रहे किसानों को अभी तक फसल में स्प्रे के इस्तेमाल की जरुरत नहीं पड़ी। रणबीर मलिक ने बताया कि 2008 से वह इस मुहिम से जुड़ा हुआ है और इस दौरान उसने कभी भी स्प्रे नहीं किया है। वह पिछले दो सालों से देसी कपास की खेती ले रहा है। कपास की बिजाई के लिए बाजार से बीज खरीदने की बजाए कपास की लुढ़वाई करवाकर घर पर ही कपास का बीज तैयार कर देसी कपास की बिजाई करता है। इगराह के किसान मनबीर रेढू ने कहा कि उसने पिछले चार साल से एक बार भी अपनी फसल में स्प्रे का प्रयोग नहीं किया है। रमेश व रामदेवा ने बताया कि उन्होंने तीन साल से स्प्रे का प्रयोग
किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श करते किसान।
पूरी तरह से बंद कर रखा है। जयभगवान ने बताया कि उसने पिछले दो वर्षों से एक बार भी स्प्रे का इस्तेमाल नहीं किया है। खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि हमारी तो सिर्फ 36 बिरादरी ही हैं, लेकिन कीटों की तो 10 लाख किस्में हैं, तीस लाख किस्म के जीवाणु हैं। अगर खुदा ना खास्ता इस पृथ्वी से ये जीव लुप्त हो जाएं तो मानव समाज अपने बलबुते तो दो साल भी  जीवित नहीं रह सकता। ढांडा ने कहा कि 30 अक्टूबर को 18वीं पंचायत होगी और इस पंचायत के बाद खाप प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श कर नवंबर माह में 19वीं पंचायत के लिए समय निर्धारित किया जाएगा। इस पंचायत में पूरे प्रदेश की खाप पंचायतों के प्रतिनिधि भाग लेंगे तथा दशकों से चले आ रहे इस विवाद को निपटाने के लिए अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाएंगे। किसान पाठशाला के किसानों ने खाप प्रतिनिधियों को हथजोड़े का चित्र स्मृति चिह्न के तौर पर देकर सम्मानित किया।
अपने मचाम बना कर शिकार के इंतजार में बैठी डायन मक्खी।
   

Tuesday, June 19, 2012

खाप खेत पाठशाला का पहला सत्र

 इस सदी के बारहवें साल में आज के दिन निडाना के जोगिन्द्र मलिक के खेत में खाप खेत पाठशाला की शुरुवात हुई. इस पाठशाला में 12 गावों के किसान भाग ले रहें हैं. ये गावं हैं-निडाना, निडानी, ढिगाना, लालित खेड़ा, चाबरी, खरक रामजी, सिवाहा, अलेवा, शाहपुर, राजपुरा--भैन, इगराह, जलालपुरा व रोहतक जिला के लखन--माजरा व् भैंसी.  मिलजुल कर कीट विज्ञान के चश्मे से स्थानीय ज्ञान पैदा करने की कौशिश करेंगें.