Tuesday, July 14, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का पांचवा सत्र।

चार्ट पर रिपोर्ट तैयार करते किसान
स्लेटी भूंड
पंखुड़ियाँ चबाते हुए तेलन
बाजरा की बिजाई, धान की रोपाई व् छोरियां के दाखिले जोरों पर हैं। ये तीनों काम इसे सै जित घरबारण की बजाय घरबारी की जस्र्रत ज्यादा पडै सै। इसी लिए तो आज जुलाई की चौदह तारीख को निडाना में अपना खेत अपनी पाठशाला में किसानों की हाजिरी तीस की बजाय तेईस ही रही। खेत में पहली बार किसानों की हाजिरी कम नज़र आई। कपास की फसल पर इस सीजन के फूल भी पहली नजर आए और पहली बार ही स्लेटी भुंड व् तेलन नामक चर्वक कीट भी देखे गए। तेलन फूलों की पंखुडियां, पुंकेसर व् स्त्रीकेसर को कुतर कर खाते पाई गई जब कि स्लेटी भूंड पतों के किनारे व् फूलों के किनारे खाते हुए पाया गया। पांच--पांच किसानो के चार समूहों द्वारा दस --दस पोधों का बारीकी से सर्वेक्षण, निरिक्षण व् अवलोकन किया गया। शीशम के नीचे किसानो ने चार्टों के माध्यम से अपने अपने समूह की जानकारी दी। सफेद मक्खी, तेला व् चुरडा आदि रस चूसक हानिकारक कीटों की संख्या क्रमश: 2.7 प्रौढ़ प्रति पत्ता, 1.3 निम्फ प्रति पत्ता व् 4,7 निम्फ प्रति पत्ता पाई गई। इन कीटों कि संख्या पिछले सप्ताह के मुकाबले कुछ ज्यादा पाई गई पर आर्थिक कगार से अब भी काफी कम है। कपास का भस्मासुर मिलीबग तो 40 पौधों में से एक पर ही पाया गया। रणबीर ने अपने समूह की प्रस्तुति देते हुए बताया कि इस पौधे पर केवल 10 मिलीबग थे जिनमें से 7 मिलिबगों के पेट में अंगीरा के बच्चे पल रहे थे। अंगीरा नामक सम्भीरका ने इस खेत मे मिलीबग को ख़त्म करने में उलेखनीय कार्य किया है। अब कपास के इस खेत में मकडियों की संख्या भी काफी बढ़ गयी है। मकड़ी एक मांसाहारी जीव सै-इस बात की जानकारी तो पाठशाला के सभी किसानों को हो गयी है।
अंगिरा से परजीव्याभित मिलीबग।
दस्यु बुगड़ाः चुरड़े का शिकार।
तेला, सफ़ेद मक्खी व् चुरडा जैसे छोटे--छोटे हानिकारक कीटों का खून चूस कर गुजारा करने वाले एन्थू बुगडा के निम्फ भी कपास की फसल में पाए गये। कपास की फसल पारिस्थितिक तंत्र का विश्लेषण करने पर पाया गया कि अभी इस खेत में कीटनाशकों का इस्तेमाल करने कि दूर--दूर तक जरुरत नही है। तेलन आकार में बड़ी, दूर से ही दिखाई देने वाला कीट होने के कारण जरुर किसानों के लिए चिंता का कारण बन रही थी। पर महाबीर पिंडे व् जिले पंडित ने तेलन नामक ब्लिस्टर बीटल के नियंत्रण का देसी तरीका बता कर सबको हैरान कर दिया। उन्होंने बताया कि इस बीटल के पंख बहुत भारी है इसलिए एक बार गिरने के बाद, इसके लिए उड़ना बड़ा मुश्किल होता है। एक चप्पल हाथ में लेकर तेलन को मारो, गिरते ही पैर में पहनी चप्पल से इसे मार दो। इन दोनों ने तेलन को मार गिराने का जिवंत प्रदर्शन भी करके दिखाया। तेलन के मुतने पर शरीर पर फफोले हो जाते है, इसकी जानकारी तो किसानों को पहले से ही है। पर सेवा सिंह का न्यूं कहना की मैं तो इस तेलन नै न्यूं ऐ मार दिया करू -हथेली बीच मसल कै। मेरे कदै कुछ नहीं होंदा। या बात किस्से कै हजम नहीं होई। इस पर तो चन्द्र भी न्यूं बोल्या अक सेवा अपने इस ज्ञान नै अपने ऐ धोरे राख। इन बंकुलियाँ की तरिया फ्री में मत बाँट। आज कै इस सत्र में स्टार-न्यूज़ का स्थानीय संवाददाता श्री राजेश रावल भी मौजूद रहा और कीटों की कुछ वीडियो भी तैयार की। इस फोटों में एक एंथू बुगडा का निम्फ तेले का बाड्डी-जूस पिते हुए दिखाया गया है। ये फोटो राजेश ने ही खिंच कर इस पाठशाला के किसानों को दी है।

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