Tuesday, September 29, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का सोलहवां सत्र


Tuesday, September 22, 2009

अपना खेत अपनी पाठशाला का पंद्रहवां सत्र

निडाना कि इस पाठशाला का पिछला सत्र "किसानों-वैज्ञानिकों का संवाद" के नाम पर था। सारा दिन 35 कृषि विकास अधिकारियों के साथ बीता। गजब का हुआ अनुभव और हुई अजब सी अनुभूति। पाठशाला के आयोजकों एवं संयोजकों के पास इसके वर्णन एवं व्याख्याँ के लिए शब्द नहीं हैं। इस कार्यकर्म से किसानों के उत्साह में संचार की बानगी आज पाठशाला के पन्द्रहवें सत्र में दिखाई दी। अब कपास की फसल में अन्य कीटों की अपेक्षा "Red Cotton bug" व् "Cotton Dusky Bug" ज्यादा दिखाई देने लगे हैं। इन्हीं दो पादपखोरों पर सभी का ध्यान है। रणबीर ने आशंका प्रकट की की काटन डस्की बग के सैकडों निम्फ ज्यादातर अर्धखिले टिंडों में पावै सै। हो-ना-हो यु बग अंडे भी अर्धखिले टिन्डाँ में देता पावैगा। या सुनते ही मिहर सिंह के सुरेन्द्र नै कपास के फोहे से बीज के पास तीन झकाझक सफ़ेद अंडे ढूंढ़ दिए। दीपक फोहे में से हलके पीले रंग के अंडे खोज लाया। रणबीर ने कच्चे पत्ते पर हलके गुलाबी रंग के अंडे ढूंढ़ मारे। तीनों किसानों द्वारा लाये गये ये अंडे हालाँकि तीन रंग के
थे पर तीनों की बुनावट व् आकार हुबहू एक जैसा था। इसका मोटा सा अंदाजा यही था की ये अंडे एक ही कीट के हैं। अर् हैं भी- गाधला बग़ के। ठीक इसी क्षण बिल्ली की तरह दा मे बैठे बसाऊ नै डा.सुरेन्द्र दलाल को लाठी की खोद अर् भीत बीच ले लिया, "डा.साहब, आपने तो न्यूँ बताया था अक यू गंधला बग़ अपने अंडे या तो गीली जमीन में देता है या फ़िर जमीन की तरेडों में।"

डा.दलाल नै भी एक बै तो धरती भिड़ी होगी। पर तुंरत संभल के न्यूँ बोल्या," मेरा इसमे किम्मे कसूर नहीं। मनै तो या बात थारै तै किताब में तै पढ़ कर बताई थी। किताब NCIPM,Pusa Campus,New Delhi आल्याँ की सै। चार धुरंधर विज्ञानिकां नै मिलकर लिख राखी सै। 1999 में 105 रुपये में खरीदी थी।" इतना कह झट डा.साहिब नै झोले में से किताब निकाल कर रत्तन के हाथ पर रख दी।
रत्तन भी पुरा खपड, बिना किताब खोले न्यूँ कहन लगा अक डा.साहब, आपनै अपराधबोध का शिकार होन की जरूरत नही। या तो प्रकृति सै। इसके खेल न्यारे-न्यारे। हो सके सै भले बक्तां में इस गंधले बग़ का जापा जमीन रूपी सामान्य हस्पताल में होंदा हो और इब इन खातिर भी अधखिले टिंडों के फोहों में डिलिवरी हट खुलगे हों।
इब तो बेधड़क हो कै इस गंधले बग़ के परभक्षी, परजीव्याभ, परजीवी या रोगाणुओं के बारे में बताओ।" मनबीर नै आज पहली बार डा.दलाल का आत्मविश्वास डगमगाया देखा। रत्तन कै हाथ में से हैंड-बुक लेली व् खोल कर पढ़न लगा। थोडी देर बाद न्यूँ बोल्या अक यु बग़ बहुत तीखी गंध छोड़ता है। इसीलिए इस बग़ को खाने वाले कीट भी बहुत कम होंगे। इस हैंड-बुक में तो इस बग़ का केवल एक ही परभक्षी बता रखा है। इसका नाम सै-Tricholeps tantilus. मेरे ख्याल तै तो यू भी एक बुगडा सै जो दुसरे कीटों का रक्त चूस कर गुजारा करता है। शायद हो भी एन्थु बुगडे की मौसी का छोरा। ना तो मनै इसकी पिछाण अर् ना मनै इसकी फोटों देख राखी।
रामजी लाल का चन्द्र जमाँ भरा बैठा था। इतनी कडे उट्टै थी। न्यूँ बोल्या अक किसने देखा सुरग भरथरी आपा मरे बिना। चालो अर् फेर माथा मारो इन अधखिले टिन्डाँ मै। और देखते-देखते किसानों ने इन अधखिले फलीय भागों में चार कीट पकड़ लिए। इनमे से दो मैगट अर् एक गर्ब सै। किसके सै ? या ना to डा.नै बेरया ar ना किसानां नै। समय अर् स्थान के हिसाब से सै परभक्षी। इनकी सही पहचान व् भक्षणता का पता लगाने का काम, किसानों की यह पाठशाला कीट-वैज्ञानिकों के जिम्में छोड़ती है। आजकल सारी यूनिवर्सिटियां में इंटरनेट सै। कोई न कोई भला कीट-वैज्ञानी जरुर म्हारी इस काम में मदद करेगा।
"सपने में ग्याभण होण की बाण छोड़ दो अर् इस डा.की जिम्मेवारी लावो। हमेटी, कृषि विश्वविधालय या इंटरनेट पर तै इन कीटों का भेद पाड़ कै लावै।" जयकिशन शर्मा नै सुझाव दिया। इसके साथ ही कप्तान द्वारा बाकुलियाँ बांटने के साथ पाठशाला के इस सत्र का समापन हुआ। इसी समय पंजाब केसरी के संवाददाता श्री अनिल पंघाल व् युवा शक्ति के पदाधिकारी श्री दलबीर चहल आ पहूँचे पाठशाला के इन किसानों से मौके पर संवाद करने। सवा घंटे के इस नये सत्र में अनिल पंघाल ने किसानों से ढेर सारी जानकारी इक्कठी की।

Wednesday, September 16, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का चौदहवाँ सत्र

आसुज लागदै की ग्यास नै चाँद निडाना के आसमान में सारी रात खेस तान कर सुता पड़ा था। सुबह-सवेरे कृषि विकास अधिकारीयों के स्वागत वास्ते इसने ठान की किसमे हिम्मत! इसीलिए पाठशाला के चौदहवें सत्र की प्रभात वेला में निडाना--चाबरी के अड्डे पर पाठशाला के केवल छ: किसान ही अपने हथजोडे(praying-mentis) का स्वागती बैनर उठाए इस उधेड़--बुन में खड़े थे कि HAMETI जींद से चौदहवीं के चाँद आयेंगे या आफताफ? खोटा इंतज़ार क्षणिक ही हुआ। ठीक आठ बज कर आठ मिनट पर हमेटी की मिनी--बस अड्डे पर आकर रुकती है। आठ मिनट लेट इसलिए होगे अक सारे रास्ते ड्राइवर कै माथे सूरज लागै था। इस बस में से ना तो कोई चाँद उतरा अर् ना कोई आफताफ। इसमे से उतरे गिन कर उन्नतीस कृषि विकास अधिकारी जो हरियाणा कै दस जिलों की नुमाईंदगी कर रहे थे तथा अब हमेटी, जींद में चल रही TOF के शिक्षार्थी। डा.हरभगवान लेट होग्या। उसने ल्याण कै चक्कर में डा.लाठर लेट होग्या। डा.नेहरा कै ताप चढ़ग्या। डा.जैन के बोझ तै मिनी--बस दबै थी। ख़ैर डा.मांगे, डा.सुभाष व् डा.राजेश की अगुवाई में इन कृषि अधिकारियों का स्वागत करते हुए भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह व् उसके साथी किसानों की टीम इन्हें गावं की तरफ़ लेकर चली। अभी आधा फर्लांग भी नही चले थे कि रणबीर व् साथी किसान अपने बुगडों वाले स्वागती बैनर के साथ शिक्षार्थियों के स्वागत में पलकें बिछाएं खड़े थे। इसके बाद मनबीर की टीम फेर राममेहर की, फेर संदीप की टीम मकडियों, लेडी बिटलों व् मक्खियों के स्वागती बैनरों सम्मेत खड़ी थी तथा अंत में राजेन्द्र की टीम कपास सेदक कीटों वाला बायकाटी बैनर उठाए खड़ी थी।
यहीं कृषि विकास अधिकारी का कार्यालय है। चौदाह बाई चौदह का कमरा। अंदर पधारने पर "चक्चुन्दर कै आए मेहमान--आ भै! लटक " वाली स्थिति थी। दफ्तर में खड़े--खड़े ही हालवे अर् बाक्लियाँ का ब्रेकफास्ट। हलवा गजब का स्वाद अर् बाकलियाँ का भी तोड़ होरया था। खड़े--खड़े ही गावं के सरपंच रामभगत सेठ नै मेहमानों का स्वागत किया अर् पैन व् पैड सप्रेम भेंट किए। खड़े--खड़े ही कृषि अधिकारियों व् किसानों की छ: टिम्में बनी। हर टीम में छ: किसान अर् छ: अधिकारी थे। ये टीम गावं के खेतों में अलग--अलग लोकेशंज पर गई। ये सभी टिम्मे अपना अवलोकन,निरिक्षण व् संवाद कायमी का काम निपटा व् खाना खाकर ठीक बारह से साढ़े बारह के बीच ब्राहमणों वाली चौपाल में पहुँची और यहीं शुरू हुआ किसानों व् कृषि अधिकारियों के मध्य संवाद कायमी का सिलसिला। सूत्रधार बने डा.सुभाष। सत्र की शुरुआत में ही डा.साहिब ने किसानों की दिल खोल कर तारीफ करते हुए गावं में पधारने पर अधिकारीयों की आभगत व् किसानों के कीट ज्ञान के लिए भूरी--भूरी प्रशंसा के बड़े--बड़े भरोट्टे बाँध दिए। सराहना की अभावग्रसता से सत्या हारे किसानों पर इस पीठ थप--थपाई का गजब का असर हुआ। ठीक इसी समय हमेटी, जींद के प्राचार्य डा.बी.एस.नैन इस चौपाल में पधारे। कृषि उपनिदेशक, डा.रोहताश सिंह, कृषि विज्ञानं केन्द्र, पिंडारा के मुख्य विज्ञानी डा.आर.डी.कौशिक भी इस पंचायत के मार्गदर्शन हेतु निडाना पहुंचे। वर्तमान सरपंच रामभगत व् भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह ने गावं व् विभाग की तरफ़ से मुख्य मेहमानों का पगड़ी पहना कर आदरमान किया। किसानों ने उनका फुलमालाओं से स्वागत किया। अधिकारीयों एवं किसानों की इस कृषि --पंचायत में रणबीर ने बेहीचक एवं निसंकोच निडाना की धरती पर कपास की फसल में पाए गए 24 हानिकारक व् 32 हितकारी कीटों के बारे में पंचायत को अवगत कराया। सूत्रधारी डा.सुभाष ने अपना तफसरा रखा कि हे! पाठशाला के किसानों आपके इस कीट--ज्ञान के तो हम कायल हैं। अब तो आप निडाना क्षेत्र में सिरसा--फतेहाबाद के मुकाबले कपास की कम पैदावार के कारणों पर बहस करो। मनबीर ने कृषि--पंचायत को बताया कि हमारे यहाँ घाट पैदावार के मुख्य कारणों में से एक है--प्रति एकड़ पौधों कि संख्या कम होना. हमने इस सीजन में साठ से ज्यादा किलों में कपास के पौधों कि गिनती की है। 504 से लेकर 3227 पौधे प्रति एकड़ पाए गये। अब आप बताइये! पौधों की इतनी कम संख्या से अच्छी--खासी पैदावार कहाँ से आएगी?
दूसरा कारण-- खरपतवारों का ठीक से नियंत्रण ना होना। बेहतर अंकुरण के लिए डा.कमल ने अपने अनुभव विस्तार से किसानों के साथ साझे किए तथा डा.राजपाल सुरा ने पंचायत को नलाई--गुडाई के नये यंत्र व् इस पर उपलब्ध सब्सिडी बारे अवगत कराया। बहस के दायरे को विस्तार देते हुए, कृषि विज्ञानं केन्द्र के मुख्य वैज्ञानिक डा.आर.डी.कौशिक ने बेहतर पोषण प्रबंधन वास्ते किसानों से अपने खेत की मिटटी जाँच करवाने की अपील कर डाली। अचानक मिटटी जांच की प्रमाणिकता को लेकर इस पंचायत में अनावश्यक तीखी बहस चल निकली। गैरप्रमाणिकता से मिटटी जांच की आवश्यकता को नकारा नही जा सकता--डा.रोहताश सिंह ने हस्तक्षेप करते हुए किसानों से निराशा से बचने की अपील की और भविष्य में मिटटी नमूनों की सही जाँच का भरोसा दिलाया। अब भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह ने पादक-पोषण व् कीट--नियंत्रण के लिए 5.5% जिंक--यूरिया--डी.ऐ.पी.घोल (0.5%जिंक: 2.5%यूरिया:व् 2.5%डी.ऐ.पी.) के स्प्रे परिणाम पंचायत में बहस के लिए रखे। उन्होंने बताया कि इस घोल का छिडकाव करने से कपास की फसल में छोटे--छोटे कीट (तेला, मक्खी, चुरडा, माईट व् चेपा आदि) मरते हुए पाए गए तथा स्लेटी भुंड जैसे कीट सुस्त अवस्था में पाए गये. इस तथ्य को 15-20 किसानों ने तीन--चार बार अजमा कर देखा है। डा.हरभगवान ने इस प्रस्तुति की दार्शनिक अंदाज में व्याख्या देने की भरपूर कौशिक की। उन्होंने किसानों को बताया कि सभी अण्डों से बच्चे नहीं निकलते। सभी बच्चे प्रौढ़ नही बन पाते और सभी प्रौढ़ अंडे देने तक जिन्दा नही रह पाते। नवजात कीट तो फौके पानी से भी मर जाते हैंलेकिन पंचायत को यह उत्तर हजम नही हुआ। किसानों ने दो टूक उत्तर माँगा कि हमें यह बताओ अक पौषक तत्वों का 5% का यह घोल कीटों के लिए टाक्षिक होगा या नहीं? इस पर डा.कौशिक ने आगे बात बढाई कि कृषि विश्वविद्यालय तो इस घोल की शिफारिस नही करता। इस घोल से तो पौधों पर घातक परिणाम आने चाहियें।
अब चंद्रपाल ने उसके खेत में देसी माल का छत्ता होने के बावजूद शहद की मक्खियों का बी.टी.कपास के फूलों पर न आने का मुद्दा उठाया। इस बात की पुष्टि आज इस खेत पर गए कृषि विकास अधिकारीयों की टीम ने भी की। इस मुद्दे का भी आज की इस पंचायत में कोई सर्वमान्य व् संतोषजनक जवाब नही मिल पाया।
डा.नविन यादव ने कपास के बी.टी.बीजों में पौधों की जड़ों की कम लम्बाई के तथ्य को रेखांकित करना चाहा। उन्होंने आशंका प्रकट की कि कही ये बी.टी.बीजों की विशेषता ही ना हो। इस पर डा.दलाल ने हस्तक्षेप करते हुए फ़रमाया की यह सिंचाई सुविधावों व् भारी मशीनरी के निरंतर इस्तेमाल से पथराई भूमि भी एक कारण हो सकता है।
बी.टी.की खाम्मियों का जिक्र चलते ही गावं के भू.पु.सरपंच बसाऊ का जोश बुढ़ापे में जोर मारने लगा। कहने लगे कि यु नया कीड़ा मिलीबग भी इन बी.टी.बीजों के साथ भारत में आया सै।
पाण्डु-पिंडारा के कृषि विज्ञानं केन्द्र से आए डा.जगत सिंह ने बसाऊ कि इस जानकारी को दुरस्त करने की नियत से फ़रमाया कि यह मिलीबग तो हिन्दुस्तान में 1995 यानि की बाढ़ वाली साल से पहले भी देखा गया है और इसकी रिपोर्ट विभिन्न रसालों की हुई है।
खुली पंचायत और खुल कर बात कहने की सब को छुट। इसी मौके का फायदा उठाते हुए डा.दलाल ने भी फिन्नोकोक्स सोलेनोपसिस नामक मिलीबग की रिपोर्टिंग की मांग डा.जगत सिंह से कर डाली। डा.दलाल तो यहाँ तक भी कह गये कि 1995 की छोडो अगर भारत में किसी ने यह फिनोकोक्स सोलेनोप्सिस नाम का मिलीबग किसी ने 2002 से पहले हमारे देश में देखा हो तो वह कुँए में पड़ने को तैयार?
आज के इस प्रोग्राम में मज़ा आ गया। समय का किसी को भी ध्यान नही रहा। ठीक साढ़े तीन बजे डा.सुनील दलाल ने रसगुल्लों से सभी प्रतिभागियों का मुहं मिट्ठा करवाना शुरू किया। इसी समय कृषि उपनिदेशक डा.रोहताश सिंह ने जिले में चल रही कृषि विभाग की विभिन्न स्किम्मों की जानकारी दी। उन्होंने आज के इस प्रोग्राम में उभरे बहस के मुख्य बिन्दुओं को वर्कशाप में उठाने की भी बात कही। प्रोग्राम की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए हमेटी के प्राचार्य डा.बी.एस.नैन ने निडाना के इन किसानों को एक दिन हमेटी में आने का निमंत्रण दिया। आज के इस कार्यकर्म के अंत में सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद करते हुए डा.सुरेन्द्र दलाल ने डा.नार्मन बोरलाग की मृत्यु पर शोक प्रस्ताव रखा जिस पर सभी ने दो मिनट का मौन धारण कर इस महान कृषि वैज्ञानिक को श्रधांजलि भेंट की।

Tuesday, September 8, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का तेहरवाँ सत्र

आज निडाना की अपना खेत--अपना पाठशाला का तेहरवाँ सत्र है। इसमे अब किसानों की हाजिरी कम रहने लगी है। मौसम की मार अर् कुणबे की पुकार इस पतली हाजिरी के लिए है जिम्मेवार। आज किसानों ने भिड़ते ही तम्बाकू आली सुंडी व् इसके अंडे ढूंढ़ लिए। अभी तक इस खेत में कपास की फसल पर इस सुंडी द्वारा खाए गये पत्ते नही मिले थे। बल्कि यह सुंडी भी सांठी के पौधों पर ही पाई गई है। सांठी का इस खेत में तोड़ होरया सै। इस सांठी में हरी सुंडी नै फतुर मच्चा राख्या सै। इस सुंडी को किसान सांठी वाली सुंडी कहा करै सै। किसान इस सुंडी नै मारण खातिर भी सांठी पर कीटनाशकों का छिडकाव करते हैं। उन्हें डर रहता है कि सांठी पाछे यह सुंडी बाडी में भी चढज्यागी। आज पाठशाला के किसानों ने बारीकी से निरिक्षण व् अवलोकन कर अच्छी तरह से तस्सली करली कि यह सुंडी कपास में नुकशान नही करती। सांठी में इसकी अधिकता होते ही दुनिया भर के पक्षी इस सांठी आली सुंडी को खाने के लिए खेत में आ धमकते हैं। जै किसान स्प्रे इस्तेमाल नहीं करे तो सांठी नै यह सुंडी खा जा अर् सुंडी नै कीटखोर-पक्षी नही छोड दे। खूब खैड़ मार के भी आज किसानों को इस सांठी वाली सुंडी के अंडे नजर नहीं आए। लेकिन इस माथामारी में किसानों ने इस सुंडी को परजिव्याभित करने वाली कोटेसिया नामक सम्भीरका के ककून ढूंढ़ लिए। सांठी के पौधों पर कराईसोपा के अंडे ढूंढ़ लिए। ध्यान रहे कि इस कराईसोपा के गर्ब तरुण सुंडियों व् अण्डों का भक्षण करते हैं। आज तो इस खेत में सांठी के पौधों पर हाफ्लो नामक लेडी बीटल भी पाई गई। कपास में पाए जाने वाले विभिन्न पतंगों के अंडे व् तरुण सुंडियां लेडी बीटल व् इनके बच्चों का भोजन बनती हैं। इस कपास के खेत में गजब का प्राकृतिक संतुलन है हानिकारक कीटों व् लाभदायक कीटों के बीच। हो भी क्यों ना! महाबीर पिंडा ने इस खेत में अब तक किसी भी कीटनाशक का एक भी स्प्रे नहीं किया है। और तो और अबकी बार महाबीर पिन्डै ने सड़क व् नाली के सहारे खड़े कबाड़ को भी साफ़ नही किया। इन गैरफसली पौधों को हमारे किसान कबाड़ कहते हैं तथा वैज्ञानिक इन्हे खरपतवार कहते हैं। इनमे कांग्रेस घास, पीली बूटी, कंघी बूटी, उलटी-कांड, आवारा-सूरजमुखी, अक्संड जैसे अनेक पौधे शामिल हैं। वैज्ञानिक इन पौधों को केवल हानिकारक कीटों के आश्रयदाता के रूप में ही देखते हैं। " न रहेगा बांस-अर् ना रहेगी बांसुरी।" इसीलिए तो कीट नियंत्रण के लिए इन खरपतवारों को नष्ट करने की बात करते हैं। परन्तु पाठशाला के किसानों का कहना है कि हमें कीट नियंत्रण को भी समग्र दृष्टी से निंगाहना चाहिए। प्रकृति में हर जगह-हर पल द्वंद्व मौजूद होता है। इन खरपतवारों के लिए शाकाहारी कीट प्रलयकारी भूमिका में होते हैं जबकि यही कीट, मांसाहारी कीटों व् उनके बच्चों के लिए पालनहार कि भूमिका में होते हैं। अगर हम पंगे ना लेकर इन दोनों तरह के कीटों को फलने-फूलने का मौका दे तो हमारी फसल में दोनों तरह के कीटों का आगमन साथ-साथ होगा और हमारी फसल कीटों के नुक्सान से बची रहेंगी।
सत्र के अंत में किसानों ने अगले हफ्ते 15 तारीख को होने जा रही "किसान-वैज्ञानिक संवाद" जिसमें हरियाणा के दस जिलों से 35 कृषि विकास अधिकारी, हमेटी के प्रिंसिपल, कृषि उपनिदेशक, व् के.वि.के.पिंडारा के मुख्य वैज्ञानिक भाग लेंगे, की तैयारियों का जायजा लिया। सामूहिक फैसले लेते हुए किसानों ने व्यक्तिगत जिम्मेवारियां ली। मेहमानों का स्वागत, उनके लिए नाश्ता और दोपहर के भोजन की व्यवस्था की जिम्मेवारी खेत-पाठशाला के किसानों ने तय की। आयोजन स्थल तय किया। छ: लोकेशंज के लिए छ: ग्रुप लीडर भी आजके सत्र में तय किए। नाश्ते में हलवा उपलब्द करवाने की जिम्मेवारी राजेन्द्र ने तथा बाकुलियों के प्रबंधन की जिम्मेवारी कप्तान ने ली। मेहमानों के स्वागत वास्ते गाँव के सरपंच श्री राम भगत सेठ भी उस दिन कार्यक्रम में हाजिर रहेंगे। सरपंच से बात करने की जिम्मेवारी रणबीर ने ली|

Tuesday, September 1, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का बाहरवां सत्र

आज अपना खेत अपनी पाठशाला को चलते हुए तीन महीने हो चुके हैं। पाठशाला के किसान पौधों पर कीटों की गिनती करते करते बोर हो चुके हैं। अब किसान कपास की फसल में नये नये कीटों के चक्कर में रहते हैं।जहाँ पुराने कीटों की संख्या कम हुई है । वहीं कपास में नये कीटों का आगमन टिंडों के साथ हुआ है। ये कीट हैं रेड कोटन बग और कॉटन डस्की बग जिन्हें किसान लाल बनिया तथा मटमला बनिया कहते है। किसानो ने इन कीटो को जब सीधे तौर नुकसान करते हुए नही पाया तो आपसमें चर्चा का दोर शुरू हुआ। सुनील ने बताया शायद ये कीट कपास में नुकसान नही phunchate है बसाऊ ने बताया बुजुर्ग इन कीटो को बनिया बताते है। इस का मतलब साफ है किये कीट नुकसान तो जरुर पहुचाते हैं। बनिये ने किसानो को नुकसान ही पहुंचाया है। रणबीर ने सोचने पर मजबूर करते हुए कहा ये यदि नुकसान नही करते तो ये यहाँ पर कर क्या कर रहे हैं। ये क्या खा क्या रहे हैं । जिस से ये जिन्दा रहते हैं। यह बात सोचने वाली थी इस लिए किसानों ने दोबारा गहनता से निरिक्षण शुरू किया। जिस में पाया गया कि ये कीट खिली हुई कपास में बिनोलो के पास झूमे हुए पाए और इन कि हरकतों पर ध्यान देने पर पाया कि ये कीट बिनोलो से तेल चूसते हैं। और कपास कि क्वालिटी को नुकसान पहुंचाते हैं। किसानो ने इन कीटों के उदगमस्थल को तलाश ने कि कोशिश तो कॉटन डस्की बग के अंडे तथा बच्चों को खिली हुई कपास के अंदर काफी मात्रा पाया। यह तो दुर्भाग्य है कि दोनों ही कीट बदबूदार हैं । जिस से कोई भी कीट इन कीटों को नुकसान पहुंचाते हुए अभी तक तो नही पाया गया लेकिन पिछले सप्ताह के मुकाबले इन कीटों कि घटी संख्या को देखते हुए लगता है कि कोई कीट तो हैं जो इन कीटों को नुकसान पहुंचाते हैं।
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