Tuesday, July 7, 2009
अपना खेत-अपनी पाठशाला का चौथा सत्र
जुलाई की सात तारीख में सुबह के साढे सात बजे है। निडाना गावं के महाबीर पिंडा के खेत में अपना खेत--अपनी पाठशाला के लिए किसान पहुँच रहे हैं। निडाना के किसानों के अलावा रुपगढ़ गावं से राजेश व् कुलदीप जेई, ईगराह से मनबीर व् धर्मबीर, चाबरी से सुरेश व् निडानी से वजीर भी इस पाठशाला में भाग लेने के लिए आए हैं। भैरों खेड़ा के संदीप व् मनोज भी इस सत्र में टेम पर ही आ लिए। ललित खेड़ा के रामदेव, राजकुमार व् रमेश भी यहाँ उपस्थित हैं। आजकल भाईचारे के टोटे में इतने भाइयों का एक जगह कीटों के खिलाप जंग में शामिल होना मंबिरे के लिए बहुत खुशी की बात सै। पर यहां बजट की बहस पर बरसात की बहस भारी पड़ रही है। देश भर के ज्योतिषियों व् मौसम वैज्ञानिकों की खिली उडाते हुए कप्तान तीन दिन के भीतर भारी बरसात की भविष्यवाणी कर रहा है। इसी बरसात की आश में आसमान की तरफ़ टक--टकी लगाए किसानों की टोलियाँ अपने हाथ में कागज, कलम व् लैंस ले कर कपास की फसल में अवलोकन, निरिक्षण व् सर्वेक्षण के लिए उतरती हैं। प्रत्येक टोली में पाँच किसान। इन्ही में से एक ग्रुप का लीडर। मनबीर, रणबीर, जयदीप, जयपाल, रत्तन व् जयकिशन स्वभाविक तौर पर लीडरों के रूप में सामने आ रहे है। आज उस समय किसानों की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा जब उन्होंने खेत में घुसते ही मित्र कीट के रूप में क्राईसोपा के अंडे, उसके शिशु व् प्रौढ़ भारी तादाद में दिखाई देने लगे। इसका सीधा सा मतलब था- हरे तेले, सफ़ेद मक्खी, चुरडा व् मिलीबग आदि हानिकारक कीटों का खो। रुपगढ़ से आए राजेश ने अक्संड के पौधे पर मिलीबग के बच्चों को खाते हुए हाफ्लो के गर्ब मौके पर पकड़ लिए। हाफ्लो ब्रुम्स नाम की एक छोटी सी बीटल है जिसके प्रौढ़ व् गर्ब बडे ही चाव से मिलीबग के शिशुओं को चबा -चबा कर खाते है। क्राइसोपा के शिशुओं को बंद बोतल में थोक के भाव तेले, सफ़ेद-मक्खी व् चुरडा के प्रौढ़ों व् बच्चों को खाते अपनी आंखों से देखा। किसानों ने कपास की फसल में मकडियों को भी खूब मौज करते देखा। इसके अलावा मित्र कीटों के रूप में मिलीबग की कालोनियों में अंगीरा नामक सम्भीरका भी देखि गई जो कीट--वैज्ञानिकों में एनासिय्स के रूप में प्रसिध्द है तथा मिलीबग की पुरी आबादियों को परजीव्याभीत करने में सक्षम है। मित्र कीटों की उपस्थिति से अति--उत्साहित हम कीटों की गिनती कर लेने के बावजूद आज इनके आर्थिक स्तर की गणना करने से चुक गये। चाह इसी ही चीज होवै सै। कपास की फसल में हानिकारक कीटों के विरुद्ध जंग में अचानक इतने साथी व् हिमायती मिल जाने पर किसान खुशी में सब कुछ भूले जा रहे थे। क्या आर्थिक हद? और क्या पारिस्थिति विश्लेषण? इनकी इस खुशी में डा.क्यूँ भांजी मारण लाग्या। आज के सत्र में आर्थिक हद अर् पारिस्थिति विश्लेष्ण बीच में ही छोड़ कर डा.सुरेन्द्र दलाल ने भी लैप--टाप पर स्लाइड्स की मार्फ़त मिलीबग के इतिहास, इसका जीवन--चक्र, भोजन विविधता व् भक्षण क्षमता, इसकी विभिन् प्रजातियों, इसकी प्रजनन क्षमताओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए इसके परजीवियों, परभक्षियों व् रोगाणुओं की जानकारी किसानों को दी। माणस ज्यादा-जगह थोड़ी, ऊपर तै बिजली कोन्या थी। इस लिए स्लाइड दिखाने वाले व् देखने वाले सब पसीने में बुरी तरह भीग गये। पर उलाहना किसनै देवै। इस काम खातिर किस्से नै पीले चौल तो भेजे नही थे। पाठशाला में बांटी जाने वाली बांकुलियों को कोई न्यौंदे के चौल समझ ले तो इसमे किस्से का के कसूर। लैप-टाप की सेवाएँ उपलब्ध करवाने के लिए श्री नरेंद्र सैनी का धन्यवाद करते हुए, निडाना गावं के भू.पु.सरपंच व् इस पाठशाला के नियमित छात्र बसाऊ राम ने सत्र समाप्ति की घोषणा की।
Labels:
biocontrol,
brumus,
chrysoperla,
cotton,
defenders,
farmer-friends,
mealybug,
mealybug-parasitoid,
nidana
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment