रत्तना खड़ा होकै न्यूं कहन लाग्या -- बसाऊ, आपना यु हरियाणा स्कूल जाण जोगा भी नही होया था जब तो तनै दसवीं पास कर ली थी. आपने टेम में भी साधारण--विज्ञान कि किताब में ऊष्मा आले पाठ में गर्मी दो ढाल(संदक अर् लुकमां) बता राखी थी. आज बस इतनी सी बात सै अक् इस गर्मी में घूँघट आली गर्मी का हिस्सा ज्यादा सै जो कदे भी टेम्परेचर वाले पैमाने पर दिखाई कोन्या दे. लेकिन अपने बुजर्गों की नजर ते या घूँघट आली गर्मी कदे बच नही पाई. ज्यां ऐ ते वे न्यूं कहते आए अक् भादवे का घाम अर् साझे का काम सेधया करै.

रतने की बात मान कर किसान इस गर्मी में न चाहते हुए भी अवलोकन व् निरिक्षण के लिए खेत में उतरे. अपने--अपने समूहों में 10-10 पौधों का निरिक्षण कर बीस मिनट में ही किसान वापिस शहतूत के निचे आ लिए. सभी किसान इस बात पर तो सहमत थे अक आज के दिन कपास के इस खेत में कीड़े तो ख़त्म से ही है. थोड़े बहुत नाम लेन खातिर बच भी रहे हैं तो उनकी सेहत ख़राब सै. इस सारे घटनाक्रम पर डा.सुरेंद्र दलाल नै स्वर्गीय प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से भी कसुता मौन धारण कर रखा है. इस बात को ताड़ कर रणबीर पै नही रहा गया आर न्यूं बोल्या- " डा.साहब आप भी इस पर कुछ तफसरा रखो. आप जमाँ--ऐ मौनी बाबा बनगे. "
जबाब में डा.दलाल न्यूं कहण लगा- " रणबीर, सच्चाई तो या सै कि हम समग्र सिफारिशों से बाहर नही जा सकते. इनमें इस बारे कुछ लिख नही रखा. म्हारी हालत तो आँखों पर डिब्बे लगे, कोल्हू में जुड़े ऊंट जैसी है जिसको सिर्फ़ कोल्हू की पैड़ों में ही चलना होता है. समग्र सिफारिशें ही सर्वोपरि सै इन तै न्यारी टेक ठान का मतलब अनुशाशन का मामला सै. जै खुदा ना खास्ता सड़क पर आ गये तो कोई पाली भी नही लावै. इब थाम ही बताओ मै क्यूकर नाथ तुड़वान की हिम्मत करू? "
या सुन कर मै मनबीर भी चुप नही रहा, " न्यूँ तो घबराओ मत. आपके पास साढे तीन हजार किसानी परिवार सै. जै सारे जने साल में एकबार चार--चार धड़ी दानें भी आप नै दे दिवां तो आप के पास साढ़े सत्रह सौ मन दाने होगे. जै मंडी में बेच के आवोगे तो सात लाख के होगे. इतनी तनखा तो आपकी कदे नही होवै. जो कहना सै खुल कर कहो. "
" मान लिया मूलधन सौ से क्या घर में ब्याज आना शुरू हो जाता है."--डा.नै अपना स्पष्टिकरण देने की कोशिश की.
जयपाल के सब्र का बाँध टुटा- "डा.दलाल, इस सांग की कोई सैदाँतिक व्याख्यां हो तो बताओ नही तो सूखी बातां के क्यों भरोटे बान्धो सो."
इस पाठशाला में सदा चुप रहने वाले सेवा अर् जिले नै भी आज एकसाथ चुपी तोड़ने का सार्थक प्रयास किया- "अगर छो में नही आवो अर् म्हारी हँसी नही करो तो एक बात हम भी कह दा."
"यहाँ तो सारे बराबर सा. खुल कै बोलो."-- रतने नै सहारा लाया.
जिले नै आगे बात बढाई- "जिब आपका यु पोषक तत्व यूरिया औस में पत्तों पर लाग ज्या तो पत्तों को जला दे सै. अर् फसल में जै टिन्डें नही पाटै तो टंकी गेल तीन किलो यूरिया का घोल पत्ते फुकन खातिर सारी हाण इस्तेमाल करा सा. फेर यु कीडों को कडै बक्शै था."
या सुन कर तो डा.दलाल भी म्हें--म्हं मुस्कराया पर पकड़ा गया. सारे किसान एकदम चिलाये- "यूरेका! --यूरेका! इब तो डा.साहब कुछ बोल."
"बात में तो जिले वाली में दम सै. जै इस बात नै जीव के वजन के हिसाब से तोल कर देखा तो या और भी वजनी हो जा सै. जिंक,यूरिया व् डी.ऐ.पी.का 5% का घोल जहाँ पौधों के लिए खुराक का कम करता है वहीं यह घोल ग्राम व् मिलीग्राम वजन वाले छोटे--छोटे कीटों के लिए जहर का कम कर सकता है. इसमे कोई ताजुब्ब की बात नहीं होनी चाहिए."-- कह कर डा, दलाल नै अपनी बारी टाळी.
आजकी पाठशाला में फैसला लिया गया कि इस हफ्ते अपने--अपने खेत में इस घोल का कीटनाशी प्रभाव देखेंगे.
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