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चितकबरी सूंडी का प्रौढ़। |
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चितकबरी सूंडी (गोभ वाली सूंडी) |
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चितकबरी सूंडी का अंडा। |
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मकड़ीः शहद की मक्खी का शिकार। |
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मकड़ीः कराईसोपा का शिकार। |
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मकड़ीःअंडों की सुरक्षा में। |
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मकड़ीः स्वयं हुई शिकार। |
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विशालकाय मकड़ी। |
आज अगस्त की चार तारीख को निडाना गावं में अपना खेत - अपनी पाठशाला का आठवां सत्र है। चौमासे में भी बरसात का अकाल पड़ा हुआ है। कपास की बिजाई से लेकर अब तक केवल एक बार ही बारिश हुई है। यह मौका था 27 जुलाई का। अबकी बार तो किसानों को भूमि में मौजूद आल को दाब कर ही काम चलाना पड़ रहा है। पहले कसोले से नलाई व् अब हल से गुड़ाई करके ही खेत में खड़ी कपास की फसल के लिए नमी का जुगाड़ किया जा रहा है। इसके अलावा महाबीर पिंडे नै दो दिन पहले 5.0 ग्राम जिंक सल्फेट , 25.0 ग्राम यूरिया व् 25.0 ग्राम डी.ऐ.पी.प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर सात टंकी एक एकड़ में खड़ी अपनी इस कपास की फसल में मारी सै। आज फसल की रौनक में गजब का सुधार देख कर सभी किसान उत्साहित हैं। हमेंशा की तरह पाठशाला के इस सत्र में भी कीट अवलोकन व निरिक्षण के लिये किसानों के पाँच ग्रुप बने। हर ग्रुप में पाँच-पाँच किसान थे। प्रत्येक ग्रुप को दस-दस पौधों का सर्वेक्षण करना है व आर्थिक-कगार निकालने के लिये कीटों की गिनती करनी है। रणबीर के नेतृत्त्व में विनोद, संदीप, महाबीर व् राममेहर के किसान समूह ने आज पौधों का अवलोकन व् निरिक्षण करते हुए तेला, सफेद-मक्खी व चुरड़ा आदि रस चूसकर हानि पहुँचाने वाले छोटे-छोटे कीड़े को व्यापक पैमाने पर मरा हुआ पाया। किसानों के इस ग्रुप ने स्लेटी-भूंड, चैफर-बीटल व भूरी पुष्पक बीटल आदि चर्वक कीटों में अजब सी सुस्ती को भी नोट किया। पोषक तत्वों के छिडकाव से पौधों में वृद्धि तो सामान्य सी बात सै पर कीटों में सुस्ती व मौत नै सभी किसानों को हैरान कर दिया। जयकिशन ने खेत के मालिक महाबीर पिंडा पर शक कर डाला कि कहीं इसने चोरी-छुपे कीटनाशकों का स्प्रे कपास की अपनी इस फसल में कर दिया हो। महाबीर पिंडा इस आरोप पर तिलमला उठा और नेमा-धर्मी करने लगा। बात उलझती देख, डा. सुरेन्द्र दलाल ने अपने इन किसान मित्रों को इस सप्ताह अपने-अपने खेत में इस मिश्रण के 5.5 प्रतिशत घोल का स्प्रे करने व परिणाम नोट करने का सुझाव दिया। अन्तः किसानों ने पोषक तत्वों के इस कीटनाशी प्रभाव को अपने-अपने खेत में बारीकी व् विस्तार से आंकलन करने का फैसला किया। इस तिखी बहस के बावजूद किसानों के लिए यह खुशी की बात थी कि कपास के इस खेत में हानिकारक कीटों की संख्या आर्थिक कगार से कोसों दूर है। कपास के इस खेत में चित्तकबरी सुंडी का एक आध प्रौढ़ पतंगा, दो-चार सूंडी व एक-दो अंडा ही नजर आया। लगता है परजीव्याभ व् परभक्षी कीट शायद महाबीर पिंडे पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो रहें हैं। कपास के इस खेत में मकड़ियों के भी ठाठ हैं। इन मकड़ियाँ नै खेत मालिक के भी ठाठ ला रखे सै। आधा दर्जन से ज्यादा किस्म की मकड़ियाँ देख ली किसानों नै, इस खेत में आज। इस सप्ताह तो मकड़ियों की औसत प्रति पौधा इस खेत
में आठ से ज्यादा आई सै। घनखरे कीड़ों को तो ये मकड़ियाँ ही देख लेंगी। पर अफ़सोस की सुंडियों के टोटे में, इंजनहारी अपने बच्चों की परवरिश के लिए किसान मित्र मकड़ियों को ही अपने मिट्टी के बने घरों में ढ़ो रही हैं। किसी ने सही कहा है कि, "
जी का जी बैरी। मक्खी का घी बैरी।।" सत्र के आखिर में हर सप्ताह की तरह इस बार भी चन्ने की बाक्लियाँ बांटी गई।
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