Tuesday, July 14, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का पांचवा सत्र।

चार्ट पर रिपोर्ट तैयार करते किसान
स्लेटी भूंड
पंखुड़ियाँ चबाते हुए तेलन
बाजरा की बिजाई, धान की रोपाई व् छोरियां के दाखिले जोरों पर हैं। ये तीनों काम इसे सै जित घरबारण की बजाय घरबारी की जस्र्रत ज्यादा पडै सै। इसी लिए तो आज जुलाई की चौदह तारीख को निडाना में अपना खेत अपनी पाठशाला में किसानों की हाजिरी तीस की बजाय तेईस ही रही। खेत में पहली बार किसानों की हाजिरी कम नज़र आई। कपास की फसल पर इस सीजन के फूल भी पहली नजर आए और पहली बार ही स्लेटी भुंड व् तेलन नामक चर्वक कीट भी देखे गए। तेलन फूलों की पंखुडियां, पुंकेसर व् स्त्रीकेसर को कुतर कर खाते पाई गई जब कि स्लेटी भूंड पतों के किनारे व् फूलों के किनारे खाते हुए पाया गया। पांच--पांच किसानो के चार समूहों द्वारा दस --दस पोधों का बारीकी से सर्वेक्षण, निरिक्षण व् अवलोकन किया गया। शीशम के नीचे किसानो ने चार्टों के माध्यम से अपने अपने समूह की जानकारी दी। सफेद मक्खी, तेला व् चुरडा आदि रस चूसक हानिकारक कीटों की संख्या क्रमश: 2.7 प्रौढ़ प्रति पत्ता, 1.3 निम्फ प्रति पत्ता व् 4,7 निम्फ प्रति पत्ता पाई गई। इन कीटों कि संख्या पिछले सप्ताह के मुकाबले कुछ ज्यादा पाई गई पर आर्थिक कगार से अब भी काफी कम है। कपास का भस्मासुर मिलीबग तो 40 पौधों में से एक पर ही पाया गया। रणबीर ने अपने समूह की प्रस्तुति देते हुए बताया कि इस पौधे पर केवल 10 मिलीबग थे जिनमें से 7 मिलिबगों के पेट में अंगीरा के बच्चे पल रहे थे। अंगीरा नामक सम्भीरका ने इस खेत मे मिलीबग को ख़त्म करने में उलेखनीय कार्य किया है। अब कपास के इस खेत में मकडियों की संख्या भी काफी बढ़ गयी है। मकड़ी एक मांसाहारी जीव सै-इस बात की जानकारी तो पाठशाला के सभी किसानों को हो गयी है।
अंगिरा से परजीव्याभित मिलीबग।
दस्यु बुगड़ाः चुरड़े का शिकार।
तेला, सफ़ेद मक्खी व् चुरडा जैसे छोटे--छोटे हानिकारक कीटों का खून चूस कर गुजारा करने वाले एन्थू बुगडा के निम्फ भी कपास की फसल में पाए गये। कपास की फसल पारिस्थितिक तंत्र का विश्लेषण करने पर पाया गया कि अभी इस खेत में कीटनाशकों का इस्तेमाल करने कि दूर--दूर तक जरुरत नही है। तेलन आकार में बड़ी, दूर से ही दिखाई देने वाला कीट होने के कारण जरुर किसानों के लिए चिंता का कारण बन रही थी। पर महाबीर पिंडे व् जिले पंडित ने तेलन नामक ब्लिस्टर बीटल के नियंत्रण का देसी तरीका बता कर सबको हैरान कर दिया। उन्होंने बताया कि इस बीटल के पंख बहुत भारी है इसलिए एक बार गिरने के बाद, इसके लिए उड़ना बड़ा मुश्किल होता है। एक चप्पल हाथ में लेकर तेलन को मारो, गिरते ही पैर में पहनी चप्पल से इसे मार दो। इन दोनों ने तेलन को मार गिराने का जिवंत प्रदर्शन भी करके दिखाया। तेलन के मुतने पर शरीर पर फफोले हो जाते है, इसकी जानकारी तो किसानों को पहले से ही है। पर सेवा सिंह का न्यूं कहना की मैं तो इस तेलन नै न्यूं ऐ मार दिया करू -हथेली बीच मसल कै। मेरे कदै कुछ नहीं होंदा। या बात किस्से कै हजम नहीं होई। इस पर तो चन्द्र भी न्यूं बोल्या अक सेवा अपने इस ज्ञान नै अपने ऐ धोरे राख। इन बंकुलियाँ की तरिया फ्री में मत बाँट। आज कै इस सत्र में स्टार-न्यूज़ का स्थानीय संवाददाता श्री राजेश रावल भी मौजूद रहा और कीटों की कुछ वीडियो भी तैयार की। इस फोटों में एक एंथू बुगडा का निम्फ तेले का बाड्डी-जूस पिते हुए दिखाया गया है। ये फोटो राजेश ने ही खिंच कर इस पाठशाला के किसानों को दी है।

Tuesday, July 7, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का चौथा सत्र

जुलाई की सात तारीख में सुबह के साढे सात बजे है। निडाना गावं के महाबीर पिंडा के खेत में अपना खेत--अपनी पाठशाला के लिए किसान पहुँच रहे हैं। निडाना के किसानों के अलावा रुपगढ़ गावं से राजेश व् कुलदीप जेई, ईगराह से मनबीर व् धर्मबीर, चाबरी से सुरेश व् निडानी से वजीर भी इस पाठशाला में भाग लेने के लिए आए हैं। भैरों खेड़ा के संदीप व् मनोज भी इस सत्र में टेम पर ही आ लिए। ललित खेड़ा के रामदेव, राजकुमार व् रमेश भी यहाँ उपस्थित हैं। आजकल भाईचारे के टोटे में इतने भाइयों का एक जगह कीटों के खिलाप जंग में शामिल होना मंबिरे के लिए बहुत खुशी की बात सै। पर यहां बजट की बहस पर बरसात की बहस भारी पड़ रही है। देश भर के ज्योतिषियों व् मौसम वैज्ञानिकों की खिली उडाते हुए कप्तान तीन दिन के भीतर भारी बरसात की भविष्यवाणी कर रहा है। इसी बरसात की आश में आसमान की तरफ़ टक--टकी लगाए किसानों की टोलियाँ अपने हाथ में कागज, कलम व् लैंस ले कर कपास की फसल में अवलोकन, निरिक्षण व् सर्वेक्षण के लिए उतरती हैं। प्रत्येक टोली में पाँच किसान। इन्ही में से एक ग्रुप का लीडर। मनबीर, रणबीर, जयदीप, जयपाल, रत्तन व् जयकिशन स्वभाविक तौर पर लीडरों के रूप में सामने आ रहे है। आज उस समय किसानों की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा जब उन्होंने खेत में घुसते ही मित्र कीट के रूप में क्राईसोपा के अंडे, उसके शिशु व् प्रौढ़ भारी तादाद में दिखाई देने लगे। इसका सीधा सा मतलब था- हरे तेले, सफ़ेद मक्खी, चुरडा व् मिलीबग आदि हानिकारक कीटों का खो। रुपगढ़ से आए राजेश ने अक्संड के पौधे पर मिलीबग के बच्चों को खाते हुए हाफ्लो के गर्ब मौके पर पकड़ लिए। हाफ्लो ब्रुम्स नाम की एक छोटी सी बीटल है जिसके प्रौढ़ व् गर्ब बडे ही चाव से मिलीबग के शिशुओं को चबा -चबा कर खाते है। क्राइसोपा के शिशुओं को बंद बोतल में थोक के भाव तेले, सफ़ेद-मक्खी व् चुरडा के प्रौढ़ों व् बच्चों को खाते अपनी आंखों से देखा। किसानों ने कपास की फसल में मकडियों को भी खूब मौज करते देखा। इसके अलावा मित्र कीटों के रूप में मिलीबग की कालोनियों में अंगीरा नामक सम्भीरका भी देखि गई जो कीट--वैज्ञानिकों में एनासिय्स के रूप में प्रसिध्द है तथा मिलीबग की पुरी आबादियों को परजीव्याभीत करने में सक्षम है। मित्र कीटों की उपस्थिति से अति--उत्साहित हम कीटों की गिनती कर लेने के बावजूद आज इनके आर्थिक स्तर की गणना करने से चुक गये। चाह इसी ही चीज होवै सै। कपास की फसल में हानिकारक कीटों के विरुद्ध जंग में अचानक इतने साथी व् हिमायती मिल जाने पर किसान खुशी में सब कुछ भूले जा रहे थे। क्या आर्थिक हद? और क्या पारिस्थिति विश्लेषण? इनकी इस खुशी में डा.क्यूँ भांजी मारण लाग्या। आज के सत्र में आर्थिक हद अर् पारिस्थिति विश्लेष्ण बीच में ही छोड़ कर डा.सुरेन्द्र दलाल ने भी लैप--टाप पर स्लाइड्स की मार्फ़त मिलीबग के इतिहास, इसका जीवन--चक्र, भोजन विविधता व् भक्षण क्षमता, इसकी विभिन् प्रजातियों, इसकी प्रजनन क्षमताओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए इसके परजीवियों, परभक्षियों व् रोगाणुओं की जानकारी किसानों को दी। माणस ज्यादा-जगह थोड़ी, ऊपर तै बिजली कोन्या थी। इस लिए स्लाइड दिखाने वाले व् देखने वाले सब पसीने में बुरी तरह भीग गये। पर उलाहना किसनै देवै। इस काम खातिर किस्से नै पीले चौल तो भेजे नही थे। पाठशाला में बांटी जाने वाली बांकुलियों को कोई न्यौंदे के चौल समझ ले तो इसमे किस्से का के कसूर। लैप-टाप की सेवाएँ उपलब्ध करवाने के लिए श्री नरेंद्र सैनी का धन्यवाद करते हुए, निडाना गावं के भू.पु.सरपंच व् इस पाठशाला के नियमित छात्र बसाऊ राम ने सत्र समाप्ति की घोषणा की।







Tuesday, June 30, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का तीसरा सत्र


भोजन श्रंख्ला पर प्रस्तुतीः मनबीर व रत्तन सिंह

आज जून महीने के आखिरी दिन निडाना की अपना खेत--अपनी पाठशाला का तीसरा सत्र था। पर मौसम की बूंदा--बांदी का पहला दिन था। शायद इसीलिए निडाना के किसानों की हाजिरी पतली थी। लेकिन इस बूंदा--बंदी के मौसम में ईगराह गावं से समय पर पहुँच कर, मनबीर व् नरेंद्र ने सब को चौका दिया। मनबीर ने आते ही हाजिर किसानों को पाँच--पाँच के तीन समूहों में बांटा व् अवलोकन, निरिक्षण व् सर्वेक्षण के लिए कपास के खेत में उतारा। हर टीम ने दस--दस पौधों का बारीकी से अध्यन किया। प्रत्येक पौधे पर तीन--तीन पत्तों पर सफेद मक्खी, तेला व् चुरडा की गिनती की व् इसको नोट किया। इसके अलावा प्रत्येक पौधे पर मिलीबग सम्मेत तमाम हानिकारक कीटों व् फायदेमंद कीटों की गिनती की।
मकड़ी का शिकार
हरे तेले के निम्फ
सफेद मक्खी का प्रौढ़।
चुरड़े।
इसके बाद शीशम की छाया में बैठ कर, स्कैच--पेनों की मदद से आंखों--देखिन को चार्टों पर उतारा गया व् अपने समूह के नेताओं की मार्फ़त सबके सामने प्रस्तुत किया। सभी समूहों ने पाया कि पिछले सप्ताह के मुकाबले, सफ़ेद--मक्खी, हर--तेला व् मिलीबग का प्रकोप कम है। परन्तु चुरडे की संख्या में बढौतरी है। लेकिन बढौतरी के बावजूद, चुरडा आर्थिक--कगार से काफी नीचे है। तापमान में अधिकता, इसकी गिनती बढ़ने में सहायक हो सकती है। इस सप्ताह कपास के उस खेत में पौधों पर दस्यु बुगड़ा के निम्फ व परभक्षी जूओं का  कम होना भी चुरड़ों की बढौतरी का एक कारण हो सकता है। आज इस खेत में मित्र-कीटों के रूप में ब्रुमस नामक लेडी बीटल, भाँत-भाँत की मकड़ियाँ व् एनासिय्स नामक सम्भीरका देखी गई। पहाड़वे मॉल की मक्खी को मकड़ी द्वारा लपेटते हुए किसानों ने अपनी आंखों से देखा। क्राईसोपा के अंडे भी कपास के इस खेत में खूब नज़र आने लगे हैं। मिलीबग को परजीव्याभीत करने वाली इस एनासिय्स को निडाना के किसान अंगीरा कहते है। कपास के इस खेत में आज मिलीबग के खोखे भी देखे गए। इन खाली खोखों में से अंगीरा का प्रौढ़ जा चुका था। मनबीर ने प्रकृति में सुस्थापित भोजन श्रंखला को चार्ट की सहायता से किसानों को समझाया।प्रकृति में मौजूद द्वंद्व की भी विस्तार से व्याख्या की। आज के इस सत्र में रस चूसक हानिकारक कीटों चुरडा व् मिलीबग के जीवन-चक्र की पुरी जानकारी बातों ही बातों में डा. दलाल ने किसानों के साथ साझा की। आज के सत्र में किसानों ने अपने-अपने खेतों में पौधों की संख्या बताई जो 504 से लेकर 3227 तक पाई गई। किसानों की इस बात पर सहमती बनी की प्रति एकड़ पौधों की पर्याप्त संख्या का ना होना घाट पैदावार के मुख्य कारणों में से एक है। अगले साल किसान पौधों की संख्या का विशेष ख्याल रखेंगे। सत्र के अंत में गावं के भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह ने इस पाठशाला के किसानों के लिए पैन--पैड उपलब्ध करवाने के लिए जिला के कृषि उपनिदेशक डा.रोहताश सिंह का धन्यवाद करते हुए, गुणवता के मैगनिफाइंग-ग्लास भी समय पर उपलब्ध करवाने की उम्मीद जताई। ख़ैर बाकलियाँ बांटना तो इस पाठशाला की रिवायत ही बन गई है।
कराईसोपा का अंडा

ब्रुमस बीटल।

Tuesday, June 23, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का दूसरा सत्र।

एकाग्रता।
चुरड़ा।
आज दिनाक 23 जून, 2009 को निडाना गावं में अपना खेत अपनी पाठशाला का दूसरा सत्र शुरू हुआ। जगह थी वही महावीर पिंडा का खेत। किसानो के छ: समूहों ने अलग-अलग से खेत में दस -दस पौधों का बारीकी से अवलोकन ,निरिक्षण व् सर्वेक्षण किया। किसानो ने जो कुछ देखा व् नोट किया उसकी प्रस्तुति चार्टों के माध्यम से की गई। सभी समूहों ने बताया कि कपास के खेत में हरा तेला, सफ़ेद मक्खी, चुरडा व् मिलीबग आदि हानिकारक कीट मौजूद है। पर पहले सप्ताह के मुकाबले चुरडे को छोड़कर बाकि सभी कीटों की संख्या कम हुई है। मनबीर के समूह ने बताया कि चुरडे की औसत संख्या प्रति पत्ता केवल 3 ही है जबकि सफ़ेद मक्खी व् तेले की संख्या तो एक से भी काफी नीचे है। मनबीर के समूह ने यह संख्या इन कीटों की गिनती तीन पत्तों के हिसाब से दस पौधों पर कर के निकाली है। इसे कीट वैज्ञानिक आर्थिक कगार कहते हैं। बाकि किसानों के लिए यह बात नई थी। इस सत्र में फैसला लिया गया कि आगे से सभी किसान समूह दस पौधों पर कीटों की गिनती किया करेंगे। आज की बहस से किसानों ने माना कि मिलीबग की संख्या घटाने में एनासिय्स नामक सम्भीरका की भूमिका सबसे ज्यादा रही है। सफ़ेद मक्खी, तेला व् चुरडा के खिलाफ हमारी इस जंग में क्राइसोपा के शिशु हमारे सहयोगी बनकर आए। खेत में कपास के पौधे हाव-भावः से कुछ-कुछ प्यासे लग रहे थे। भूमि में नमी की कमी को देखते हुए, इस फसल में एक नला निकालने की दरकरार हुई। फ़िर भी अगर महाबीर की सत्या हारली हो तो, खेत में फसल वास्ते सिंचाई का प्रबंध किया जाए। अपना खेत-अपनी पाठशाला में भाग ले रहे सभी किसान अपने-अपने खेत से कम से कम एक एकड़ के पौधे जरुर गिन कर लायेंगे।
हरा तेला।
कराईसोपा  का प्रौढ़।
कराईसोपा  का अंडा।
कराईसोपा  का गर्ब मिलीबग का शिकार करते।
हरे तेले का शरीर तीन भागों में बँटा पाया गया। इसकी तीन जोड़ी टांग पाई गई। दो जोड़ी पंख पाई गई। मिलीबग की भी तीन जोड़ी टांग पाई गई। पर मकडियों का शरीर तो दो भागों में बँटा पाया गया व् इनकी चार जोड़ी टांग पाई गई। चुरडा के शिशुओं के पैर, किसान इस सत्र में गिन नही पाए। यह कम अगले सत्र में किया जाएगा। सत्र के अंत में डा.सुरेन्द्र दलाल ने रस चूसक हानिकारक कीट हरे तेले व् सफ़ेद मक्खी का जीवन-चक्र विस्तार से किसानों को समझाते हुए इनकी प्रजनन-क्षमता, इनकी भक्षण-क्षमता की जानकारी साझी की। इन कीटों के रस चूसने के परिणाम स्वरूप, प्रकोपित पौधों पर आये लक्षणों की जानकारी भी किसानों से साझी की गई। क्राईसोपा के अण्डों, इसके गर्ब व् प्रौढ़ की पहचान भी आज के सत्र में किसानों ने की। पाठशाला के इस सत्र के आख़िर में प्रसाद के रूप में आंजले भर-भर कर चन्ने की बाकुलियाँ भी बांटी गई।

Wednesday, June 17, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का पहला दिन।



मिली बग का शिकार।
ग्रुपों में अध्यन।
आज जून की सोलाह तारीख को निडाना गावं में महाबीर के खेत पर कीट साक्षरता अभियान की शुरुवात करते हुए "अपना खेत-अपनी पाठशाला" का उद्धघाटन डा.रोहताश सिंह,  उप निदेशक कृषि विभाग, जिला जींद द्वारा किया गया। डा.सिंह ने किसानो को बताया कि किसान खेत स्कूलों का आयोजन तो कृषि विभाग भी आए साल करता है, परन्तु किसानों की पहल पर अपने बलबूते यह अभियान चलाना अपने आप में एक अनूठा एवं सराहनीय प्रयास है। इस पाठशाला में उतप्रेरक की भूमिका निभा रहे डा.सुरेंदर दलाल ने मुख्य अथिति को बताया कि इस खेत पाठशाला में निडाना के किसानों के अलावा निडानी, भैरों खेड़ा, चाबरी, ललित खेडा, रुपगढ़ व् ईगराह के किसान भी भाग ले रहे है। इस अध्यन वास्ते इन किसानों के पास औजारों के नाम पर साधारण किस्म के मैगनिफाइंग-ग्लास, चार्ट व् स्कैच-पेन आदि ही हैं। किसान हर सप्ताह मंगलवार के दिन सुबह सात बजे से साढे ग्याहरा बजे तक महाबीर के खेत में कपास के पारिस्थितिकतंत्र का विस्तार से अध्यन करा करेंगे। इस काम के लिए पांच-पांच की संख्या के साथ किसानों के छ ग्रुप होंगे। हर ग्रुप दस-दस पौधों का बारीकी से अवलोकन व् निरिक्षण करेगा। इन पौधों पर हानिकारक व् लाभदायक कीटों की गिनती करेगा। इस तरह से हर सप्ताह कुल साठ पौधों के आधार ही कपास फसल की परिस्थिति का विश्लेषण किया जाएगा जिसके आधार पर कीटनाशकों के इस्तेमाल करने या ना करने का फैसला किया जाएगा। किसान सनै-सनै कपास के इस खेत में पाए जाने वाले कीटों की पहचान का काम, इन कीटों की भक्षण क्षमता व् इनकी प्रजनन क्षमता की भी जानकारी जुटाएंगे।
लेडि बीटलः ब्रह्मड़ो
एनासिय्स से परजीव्याभित मिलीबग।
मिलीबग के पेट से निकला एनासिय्स का लार्वा।
आज मौके पर पौधों कि गिनती करने पर कपास के इस एक एकड़ में 2404 पौधे ही पाये गए। पौधों की इस संख्या को काफी कम माना गया। आज के दिन इस खेत में तेले, चुरडे व् मिलीबग नामक रस चूसक कीटों की संख्या नाम मात्र ही पाई गई जोकि आर्थिक कगार से कोसों दूर है। अभी से मिलीबग के प्रकोप की शुरुवात होने के कारण, महाबीर के माथे पर चिंता की लकीरें देखी गई। लेकिन किसानों के छ: समूहों द्वारा अलग-अलग से मिलीबग के दो दुश्मन इसी खेत में ढूंढ़ लेने से महाबीर को कुछ तसल्ली हुई। मिलीबग को चबा कर खाने वाली कोक्सिनेलिड कुल की ब्रुमस नामक बीटल इस खेत में सबसे पहले जयपाल के ग्रुप ने देखी। मौके पर हाजिर डा.सुरेन्द्र दलाल ने किसानों को बताया कि ब्रुमस व् इसके बच्चे मांसाहारी कीट है तथा ये मिलीबग की थैली में से इसके शिशुओं को बड़े चाव से खाते है। मिलीबग के दुश्मन नम्बर दो के रूप में जोगिन्द्र के ग्रुप ने एक सम्भीरका को पकड़ लिया। एनासियस नाम की यह सम्भीरका अपना अंडा मिलीबग के शरीर में देती है। अंड विस्फोटन के बाद इस सम्भीरका का बच्चा मिलीबग के पेट में पलता है। ज्योंही यह बच्चा मिलीबग को अन्दर ही अन्दर खाना आरम्भ करता है,मिलीबग गंजा होना शुरू हो जाता है तथा मिलीबग का रंग पलट कर भूरा लाल होना शुरू हो जाता है। यह सम्भीरका अपने जीवन कल में तकरीबन 100 अंडे देती है। डा.दलाल ने बताया कि यह एनासिय्स नामक सम्भीरका अपने यहाँ के फसल तंत्र में मिलीबग नियंत्रण के लिए एंडी परजीव्याभ है जिसने पिछले साल मिलीबग को 60-70 तक परजीव्याभित कर दिया था।सत्र के अंत में कृषि उपनिदेशक डा.रोहताश सिंह ने इस पाठशाला के किसानों के लिए पैन, पैड व् उतम क्वालिटी के मैग्निफाइंग-ग्लास मुफ्त में उपलब्ध करवाने का भरोसा दिलाया। पाठशाला में आज भी प्रसाद के तौर पर बाकुलियाँ ही बांटी गई।

खेत पाठशाला में शामिल किसानः

1  रणबीर मलिक  निडाना   9416517951 16 सेवा सिंह   निडाना  
2  रत्तन सिंह    निडाना    9466318487  17 जयदीप      निडाना   9416852554
3  राममेहर    निडाना    9416358236  18 जिले शर्मा    निडाना   9416605207
4 महाबीर   निडाना    9991620820  19 विनोद    निडाना  
5 रघबीर  निडाना    9467684668  20 मनबीर रेड्हू  ईगराह 9467103846
6 दीपक  निडाना   9416107619 21 नरेंद्र   ईगराह  9466463471
7 पाला   निडाना    9466071095  22 धर्मबीर   ईगराह 8901016850
8 जैपाल   निडाना   9466075082 23 वजीर मलिक   निडानी   9466551396
9 दिलबाग शर्मा  निडाना       9416512068      24 राजेश  रूपगढ     9466815707
10 जयकिशन पं  निडाना   9416147383 25 कुलदीप   रूपगढ     9466283867
11 महाबीर पिण्डा  निडाना   9466963929 26 रमेश मलिक ललित खेड़ा 9416938697
12 संदीप   निडाना    9416147537 27 रामदेवा ललित खेड़ा 9467980488
13 विनोद   निडाना   9416775025 28 राजकुमार ललित खेड़ा 9466476277
14 चंद्रपाल   निडाना   9813640936 29 कृष्ण मलिक ललित खेड़ा
15 नरेंद्र बच्ची  निडाना   9466720695 30 बसाऊ  राम   निडाना  





























मिलीबग