Tuesday, June 30, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का तीसरा सत्र


भोजन श्रंख्ला पर प्रस्तुतीः मनबीर व रत्तन सिंह

आज जून महीने के आखिरी दिन निडाना की अपना खेत--अपनी पाठशाला का तीसरा सत्र था। पर मौसम की बूंदा--बांदी का पहला दिन था। शायद इसीलिए निडाना के किसानों की हाजिरी पतली थी। लेकिन इस बूंदा--बंदी के मौसम में ईगराह गावं से समय पर पहुँच कर, मनबीर व् नरेंद्र ने सब को चौका दिया। मनबीर ने आते ही हाजिर किसानों को पाँच--पाँच के तीन समूहों में बांटा व् अवलोकन, निरिक्षण व् सर्वेक्षण के लिए कपास के खेत में उतारा। हर टीम ने दस--दस पौधों का बारीकी से अध्यन किया। प्रत्येक पौधे पर तीन--तीन पत्तों पर सफेद मक्खी, तेला व् चुरडा की गिनती की व् इसको नोट किया। इसके अलावा प्रत्येक पौधे पर मिलीबग सम्मेत तमाम हानिकारक कीटों व् फायदेमंद कीटों की गिनती की।
मकड़ी का शिकार
हरे तेले के निम्फ
सफेद मक्खी का प्रौढ़।
चुरड़े।
इसके बाद शीशम की छाया में बैठ कर, स्कैच--पेनों की मदद से आंखों--देखिन को चार्टों पर उतारा गया व् अपने समूह के नेताओं की मार्फ़त सबके सामने प्रस्तुत किया। सभी समूहों ने पाया कि पिछले सप्ताह के मुकाबले, सफ़ेद--मक्खी, हर--तेला व् मिलीबग का प्रकोप कम है। परन्तु चुरडे की संख्या में बढौतरी है। लेकिन बढौतरी के बावजूद, चुरडा आर्थिक--कगार से काफी नीचे है। तापमान में अधिकता, इसकी गिनती बढ़ने में सहायक हो सकती है। इस सप्ताह कपास के उस खेत में पौधों पर दस्यु बुगड़ा के निम्फ व परभक्षी जूओं का  कम होना भी चुरड़ों की बढौतरी का एक कारण हो सकता है। आज इस खेत में मित्र-कीटों के रूप में ब्रुमस नामक लेडी बीटल, भाँत-भाँत की मकड़ियाँ व् एनासिय्स नामक सम्भीरका देखी गई। पहाड़वे मॉल की मक्खी को मकड़ी द्वारा लपेटते हुए किसानों ने अपनी आंखों से देखा। क्राईसोपा के अंडे भी कपास के इस खेत में खूब नज़र आने लगे हैं। मिलीबग को परजीव्याभीत करने वाली इस एनासिय्स को निडाना के किसान अंगीरा कहते है। कपास के इस खेत में आज मिलीबग के खोखे भी देखे गए। इन खाली खोखों में से अंगीरा का प्रौढ़ जा चुका था। मनबीर ने प्रकृति में सुस्थापित भोजन श्रंखला को चार्ट की सहायता से किसानों को समझाया।प्रकृति में मौजूद द्वंद्व की भी विस्तार से व्याख्या की। आज के इस सत्र में रस चूसक हानिकारक कीटों चुरडा व् मिलीबग के जीवन-चक्र की पुरी जानकारी बातों ही बातों में डा. दलाल ने किसानों के साथ साझा की। आज के सत्र में किसानों ने अपने-अपने खेतों में पौधों की संख्या बताई जो 504 से लेकर 3227 तक पाई गई। किसानों की इस बात पर सहमती बनी की प्रति एकड़ पौधों की पर्याप्त संख्या का ना होना घाट पैदावार के मुख्य कारणों में से एक है। अगले साल किसान पौधों की संख्या का विशेष ख्याल रखेंगे। सत्र के अंत में गावं के भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह ने इस पाठशाला के किसानों के लिए पैन--पैड उपलब्ध करवाने के लिए जिला के कृषि उपनिदेशक डा.रोहताश सिंह का धन्यवाद करते हुए, गुणवता के मैगनिफाइंग-ग्लास भी समय पर उपलब्ध करवाने की उम्मीद जताई। ख़ैर बाकलियाँ बांटना तो इस पाठशाला की रिवायत ही बन गई है।
कराईसोपा का अंडा

ब्रुमस बीटल।

8 comments:

  1. आपका ब्लाग तो बड़ा ही रोचक है बहुत सुंदर अच्छा विषय

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  2. Achhee jaankaaree hai!
    anek shubhkamnayen!

    http://shama-baagwaanee.blogspot.com

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  3. चलिए, हमारी जानकारी के लिए यहां काफ़ी कुछ मिल सकता है।

    अच्छा कार्य कर रहे हैं आप।

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  4. अच्छा है अंदाज़े-बयाँ।
    सुस्वागतम्।

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  5. Bahut sundar rachana..really its awesome...

    Regards..
    DevSangeet

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  6. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  7. बहुत सुंदर…..आप kishan bhio ke liye jo aap log kar rahe hain wah kabeele tareef hain..........हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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