Tuesday, October 6, 2009

अपना खेत-अपनी पाठशाला का सत्रहवां सत्र



आज निडाना में चल रही "अपना खेत-अपनी पाठशाला" का सत्रहवां सत्र है| इस समय तक किसान दो-दो चुगाई कर चुके हैं| आजकल सुबह के सात जल्दी बज जाते हैं| भले बक्त्तां में तो सरकारी स्कूलों का समय भी इस महीने तै साढ़े नौ बजे का हो जाया करता| इस पाठशाला में किसान सात बजे क्यूकर पूग जावै? इसीलिए तो आज आठ बजे भी डा.दलाल नै एडी ठा-ठा के किसानों की बाट देखनी  पड़ रही है| ऐकले नै ना कीट दिवैं दिखाई अर् नांही किसान| आच्छा कसुता चाला होया| ऊपर तै आणे-जाणे वाले कपास के खेत में ऐकले की हांसी और करण लागगे| ख़ैर जो भी हो, समय के पहियें नै तो घूमते रहना ही था| आहिस्ता-आहिस्ता पौने नौ बज गये जिब बसाऊ अर् बागा आते दिखाई दिए| डा.कै तो घी सा घल गया| सवा नौ बजे तक गिन कर पुरे इक्कीस किसान आ चुके थे| आज डा.को पहली बार अहसास हो रहा था कि कार्यक्रम का समय और स्थान हमेशा किसानों कि सहूलियत और फुर्सत के हिसाब से तय करना चाहिए| नही तो न्युए बाट देखनी पड़ेगी ज्यूकर आज देखनी पड़ी|
"खेत में तो घुस नही सकते| पिंडे नै कल ही इसमें ठाडा पाना ला दिया| इब के जरुरत थी पानी लान की?" - बिने के पाले नै छेड़ा छेड्या|
"इस टेम पै कपास की फसल में पानी की खासी जरुरत हो सै| नही तो पैदावार पै असर आवैगा|"- कई किसान एकदम टूट कै पड़े| रत्तन नै सुझाव दिया कि अब तो पाठशाला का काम समाप्ति की ओर है इसलिए अपने को इस पुरे सीजन में कीटों का हिसाब-किताब करना चाहिए ओर फेर अपनी पैदावार व् क्रिया-कलापों का भी हिसाब करना चाहिए| या बात सभी को पसंद आई| सभी शहतूत के निचे इक्कठे हो लिए| इस सत्र में च्या-भां व् होच-पोच रोकने के लिए डा.दलाल को जिम्मेदारी सौपी गई| उन्होंने संदीप को इस काम के लिए आमंत्रित किया| संदीप नै सभा में बताया कि शुरू में तो इस कपास कि फसल में चुरडा, हर तेला(COTTON JASSID), सफ़ेद मक्खी(WHITE FLY), मकडिया-जूं व् मिलीबग(MEALYBUG) नामक हानिकारक कीड़े देखे गये परन्तु इनमे से कोई भी रस चूसक कीट आर्थिक-कगार को छू नही पाया| इस लिए इस सीजन में इनमे से किसी भी कीट के नियंत्रण या प्रबंधन की आवशयकता नही पड़ी|
"स्टिंक-बग, मिरिड-बग व् मसखरा-बग(SQUASH BUG) भी तो देखे थे|", रणबीर ने बीच में  टांग अड़ाई|
"देखन नै तो! तेलन(BLISTER BEETLE), भूरी पुष्पक-बीटल(BROWN FLOWER BEETLE) व् चैफर-बीटल(CHAFER BEETKE) भी देखी थी|"- जवानों की बहस में बसाऊ नै जोश दिखाया|
बहस उलझ-पुलझ होते देख डा.दलाल न्यूं कहन लगा, "बसाऊ, मेरे यार तू तो पांच साल गाम का सरपंच भी रह लिया| कढ़या होया भी अर् पढ़या होया भी| फेर क्यूँ बीच में लीख पाडै| बता कित रस-चूसक कीट अर् कित चर्वक किस्म के कीट? रस चुस्कों की बात चल रही थी, चलन दे| "
"मनै, ऐकले नै क्यूँ रोको? डा.साहिब| यु रनबीर भी तो बीच में डिकड़े तोड़े था!"-बिना जबाब दिए बसाऊ कै सब्र नही आया|
" ठीक सै, इब आगै तै एक टेम पै एक ही बोलेगा| वो अपनी पूरी बात कह ले तब दूसरा बोलेगा| बीच में टोका-टाकी नही होगी| इब यु रुपगढ़िया राजेश हमें चर्वक किस्म के कीटों का मोटा-मोटा हिसाब देगा|" - डा.दलाल ने उपस्थित किसानों से मुखातिब हो अपना आदेश सुनाया|
राजेश, "डा.साहिब इस कपास के सीजन में फलीय भागों को नुकशान पहुचाने वाली, तीनों सुंडियां देखन नै भी नही मिली| एक दिन तो चितकबरी-सुंडी(SPOTTED BOLLWORM-ADULT) का प्रौढ़ मिला था अर् केवल एक दिन एक पौधे पर सात- आठ बौकियों पर इसकी सुंडी का नुकशान देखने को मिला था| जहाँ तक गुलाबी सुंडी की बात सै, इससे प्रकोपित केवल दो फिरकीनुमा फूल, मैने अपने खेत में इस पुरे सीजन में नजर आये| ना तो गुलाबी-सुंडी के दर्शन हो पाए अर् ना इसके अंडे व् प्रौढ़ दिखाई दिए| अमेरिकन-सुंडी तो 2001 में अपना विकराल रूप दिखा कर तकरीबन गायब सी हो रही है| लेकिन कपास के कुबड़े कीड़े


, हरे कुबड़े कीड़े(LOOPER), तम्बाकू आली सुंडी(ASIAN COTTON LEAF WORM), पत्ता लपेट सुंडी(COTTON LEAF ROLLER), लाल बालों वाली सुंडी व् सांठी आली सुंडी(Spoladea recurvalis)  आदि कीड़े जरुर कभी-कभार देखने में आये| परन्तु इनका भी कपास की फसल में कोई नुकशान देखने में नहीं आया|"
होक्मे का संदीप न्यूं कहन लगा,"डा.साहिब, इस राजेश नै न्यूं पूछो अक या सांठी वाली सुंडी कपास नै कद तै खान लागगी| मनै अपने खेत में खूब खेड़ मार कर देख ली| या सांठी वाली सुंडी कपास के पौधों को कुछ नहीं कहती| लोग बेमतलब डरते होए इस नै मारन खातिर सांठी पर भी कीटनाशकों का स्प्रे करते मिल जायेंगे|"
संदीप की पूरी बात ध्यान तै सुनकै डा.दलाल कहन लगा, "संदीप यु राजेश के तेरा जेठ लागै सै? सीधे राजेश नै ए क्यूँ नहीं पूछ लैंदा|" या सुन कै सारे किसान खिल-खिलाकर हंस पड़े| पर रतने नै या हंसी नहीं सुहाई अर् न्यूं बोल्या, "मेरी बात सुनो! सारे कीड़े गिना दिए| बी.टी.कपास में, हम इस मिलीबग तै डरा थे| यु मिलीबग तो भस्मासुर जिसा दिखै था| पर जमां फुस्स लिकड़ा| इसके तो भांत-भांत के कीड़े अर् रोगाणु ग्राहाक पाए| पर इस लाल-मत्कुण(RED COTTON BUG) व् श्यामल-मत्कुण(COTTON DUSKY BUG) का के करां? इनको खाने वाला कोई कीड़ा, हमने नहीं देखा| एक-आध लाल-मत्कुण जरुर फफूंद रोग से मरता हुआ पाया गया| किते-किते इसनै, मकड़ी भी चपेटे पाई गई| फेर भी इन दोनु मत्कुनों ने इबकी बार कपास की फसल में नुकशान करण में कसर नहीं घाली, खासकर बी.टी.कपास में| कम तै कम भी एक किले गेल पांच मन का खादा मारा| ये दोनु कीड़े कपास के बीजों का तेल पीगे| ऊपर-ऊपर तै कपास आछी दिखें गई अर् मंडी में तोल के समय कम पाई| इब कम उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिक शब्दां की पूंछ ठा-ठा कै इस के किम्मे कारण गिना दियो| मसलन- किसानों द्वारा प्रबंधन तकनीक का पूरी दक्षता के साथ इस्तेमाल न करना, हईब्रिडों का सही चुनाव ना करना, नये कीड़ो का आगमन एवं प्रकोप होना आदि|

4 comments: