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एकाग्रता। |
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चुरड़ा। | |
आज दिनाक 23 जून, 2009 को निडाना गावं में अपना खेत अपनी पाठशाला का दूसरा सत्र शुरू हुआ। जगह थी वही महावीर पिंडा का खेत। किसानो के छ: समूहों ने अलग-अलग से खेत में दस -दस पौधों का बारीकी से अवलोकन ,निरिक्षण व् सर्वेक्षण किया। किसानो ने जो कुछ देखा व् नोट किया उसकी प्रस्तुति चार्टों के माध्यम से की गई। सभी समूहों ने बताया कि कपास के खेत में हरा तेला, सफ़ेद मक्खी, चुरडा व् मिलीबग आदि हानिकारक कीट मौजूद है। पर पहले सप्ताह के मुकाबले चुरडे को छोड़कर बाकि सभी कीटों की संख्या कम हुई है। मनबीर के समूह ने बताया कि चुरडे की औसत संख्या प्रति पत्ता केवल 3 ही है जबकि सफ़ेद मक्खी व् तेले की संख्या तो एक से भी काफी नीचे है। मनबीर के समूह ने यह संख्या इन कीटों की गिनती तीन पत्तों के हिसाब से दस पौधों पर कर के निकाली है। इसे कीट वैज्ञानिक आर्थिक कगार कहते हैं। बाकि किसानों के लिए यह बात नई थी। इस सत्र में फैसला लिया गया कि आगे से सभी किसान समूह दस पौधों पर कीटों की गिनती किया करेंगे। आज की बहस से किसानों ने माना कि मिलीबग की संख्या घटाने में एनासिय्स नामक सम्भीरका की भूमिका सबसे ज्यादा रही है। सफ़ेद मक्खी, तेला व् चुरडा के खिलाफ हमारी इस जंग में क्राइसोपा के शिशु हमारे सहयोगी बनकर आए। खेत में कपास के पौधे हाव-भावः से कुछ-कुछ प्यासे लग रहे थे। भूमि में नमी की कमी को देखते हुए, इस फसल में एक नला निकालने की दरकरार हुई। फ़िर भी अगर महाबीर की सत्या हारली हो तो, खेत में फसल वास्ते सिंचाई का प्रबंध किया जाए। अपना खेत-अपनी पाठशाला में भाग ले रहे सभी किसान अपने-अपने खेत से कम से कम एक एकड़ के पौधे जरुर गिन कर लायेंगे।
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हरा तेला। |
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कराईसोपा का प्रौढ़। |
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कराईसोपा का अंडा। |
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कराईसोपा का गर्ब मिलीबग का शिकार करते। |
हरे तेले का शरीर तीन भागों में बँटा पाया गया। इसकी तीन जोड़ी टांग पाई गई। दो जोड़ी पंख पाई गई। मिलीबग की भी तीन जोड़ी टांग पाई गई। पर मकडियों का शरीर तो दो भागों में बँटा पाया गया व् इनकी चार जोड़ी टांग पाई गई। चुरडा के शिशुओं के पैर, किसान इस सत्र में गिन नही पाए। यह कम अगले सत्र में किया जाएगा। सत्र के अंत में डा.सुरेन्द्र दलाल ने रस चूसक हानिकारक कीट हरे तेले व् सफ़ेद मक्खी का जीवन-चक्र विस्तार से किसानों को समझाते हुए इनकी प्रजनन-क्षमता, इनकी भक्षण-क्षमता की जानकारी साझी की। इन कीटों के रस चूसने के परिणाम स्वरूप, प्रकोपित पौधों पर आये लक्षणों की जानकारी भी किसानों से साझी की गई। क्राईसोपा के अण्डों, इसके गर्ब व् प्रौढ़ की पहचान भी आज के सत्र में किसानों ने की। पाठशाला के इस सत्र के आख़िर में प्रसाद के रूप में आंजले भर-भर कर चन्ने की बाकुलियाँ भी बांटी गई।
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